पश्मीना ऊन उत्पादन ने दिखाई ‘‘आत्मनिर्भर हिमाचल’’ की राह

19 Aug 2020

‘‘आत्मनिर्भर हिमाचल’’की दिशा में राज्य सरकार ने प्रभावी कदम उठाना शुरू कर दिए हैं। मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार ने विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, जो स्वरोजगार शुरू करने के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही हैं। इसके अलावा सरकार प्रदेश में उन कार्यों को भी बढ़ावा दे रही है जिससे प्रदेशवासी स्वावलंबी बन सके। उन्हीं कार्यों में शामिल है ‘‘पश्मीना उत्पादन’’। हिमाचल सरकार राज्य में पश्मीना उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरन्तर प्रयासरत है। मौजूदा समय में प्रदेश में एक हजार किलो ग्राम पश्मीना ऊन का उत्पादन हो रहा है और अगले पांच वर्षों में इसे दोगुना करने का लक्ष्य है। विशेष है कि पश्मीना से बने उत्पाद काफी महंगे उपलब्ध होते हैं। ऐसे में पश्मीना उत्पादन से प्रदेशवासी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। निश्चित तौर पर ‘‘आत्मनिर्भर हिमाचल’’ की दिशा में पश्मीना उत्पादन बेहतर विकल्प है।

बीपीएल परिवारों को चंगथंगी और चिगू नस्लों की 638बकरियों का वितरण करेगी राज्य सरकार

हिमाचल सरकार केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत प्रदेश के बर्फीले क्षेत्रों के बीपीएल परिवारों को चंगथंगी और चिगू नस्लों की लगभग 638बकरियों का वितरण करेगी। राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत पश्मीना के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लाहौल-स्पीति, पांगी घाटी और किन्नौर जिला के बीपीएल परिवारों को चंगथंगी बकरियों की 29इकाइयों (प्रत्येक इकाई में 10मादा एक नर) और चिगू बकरी की 29इकाइयों (10मादा एक नर) को वितरित किया जाएगा। प्रत्येक इकाई के लिए सरकारी एजैंसियां लगभग 70हजार रुपए खर्च करेगी। बकरियों की 90प्रतिशत लागत केंद्रीय सरकार द्वारा वहन की जाएगी, जबकि राज्य सरकार और व्यक्तिगत लाभार्थी शेष 10प्रतिशत लागत को समान अनुपात में साझा करेंगे, इस प्रकार पांच-पांच प्रतिशत लागत राज्य सरकार और व्यक्तिगत लाभार्थियों दोनों द्वारा साझा की जाएगी। बकरियों के वितरण की निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और इस वित्त वर्ष के दौरान लक्षित परिवारों को पशुधन वितरित किये जाएंगे।

हिमाचल के इन क्षेत्रों में किया जा रहा पश्मीना का उत्पादन

मौजूदा समय में मुख्य रूप से दारचा, योची, रारिक-चीका गांवों और लाहौल की मयार घाटी, स्पीति के हंगांग घाटी लांगजा क्षेत्र और किब्बर  तथा जिला किन्नौर के नाको, नामग्या और लिओ गांव के अलावा चंबा जिला के पांगी घाटी के कुछ क्षेत्रों में पश्मीना का उत्पादन किया जाता है। राज्य में लगभग 10संगठित शॉल निर्माण इकाइयां हैं, जो पश्मीना ऊन के उत्पाद बनाती हैं, जो शिमला जिला के रामपुर बुशहर, मंडी जिला के सुंदरनगर और मंडी, कुल्लू जिला के शमशी और हुरला तथा किन्नौर जिला के सांगला और रिकांगपिओ में स्थापित हैं।

शॉल, स्टॉल और मफलर बनाने के लिए किया जा रहा 90प्रतिशत पश्मीना ऊन का उपयोग

लगभग 90 प्रतिशत पश्मीना ऊन का उपयोग शॉल, स्टॉल और मफलर बनाने के लिए किया जाता है और 10 प्रतिशत का उपयोग ट्वीड के कोट जैसे अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है। राज्य में पश्मीना ऊन उत्पादकों द्वारा मुख्य रूप से खुदरा बिक्री और निजी खरीद के माध्यम से बेची जाती है। प्रदेश की सफेद और ग्रे रंग की पश्मीना ऊन का उपयोग मुख्य रूप से राज्य की संगठित शाॅल निर्माण इकाइयों में किया जाता है। प्रदेश में पश्मीना उत्पादक अपनी ऊन की लाभकारी कीमत प्राप्त कर रहे हैं और वर्तमान में खरीददार एक किलो कच्ची पश्मीना ऊन के लिए 3500 रुपए प्रदान कर रहे हैं। ऊन की अच्छी गुणवत्ता तथा अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में पश्मीना उत्पादों की मांग बढ़ने के साथ इनके मूल्य में वृद्धि भी हो रही है। हिमाचल प्रदेश के हथकरघा क्षेत्र के संगठित और गैर संगठित क्षेत्र में लगभग 10 से 12 हजार बुनकर कार्य कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में बकरियों की संख्या लगभग 2500 है और प्रदेश सरकार इनकी संख्या बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।

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