‘‘भारत में स्वायस्य् म प्रणाली: वर्तमान कार्य-निष्पाोदन और क्षमता के बीच अंतर को समाप्तप करना’’ संबंधी विषय के प्रत्युंत्त1र में भेजे गए विचारों का सारांश

24 Nov 2015

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‘‘भारत में स्वा स्य्ंश प्रणाली: वर्तमान कार्य-निष्पा दन और क्षमता के बीच अंतर को समाप्तथ करना’’ विषय पर आपकी बहुमूल्ये टिप्पकणियों के लिए धन्यपवाद। स्वायस्य्र् प्रणालियों के स्तकम्भोंस के सुदृढ़ीकरण के माध्य्म से लाभ को अधिकतम करने के संबंध में मतैक्य। है। हमने 7 मई, 2015 तक प्राप्त 347 टिप्पअणियों को विचार-विमर्श के लिए नौ विषयों के तहत समूहित किया है जिन्हें शीघ्र ही जारी किया जाएगा। आप अपना योगदान नीचे देख सकते हैं।

विषय-वस्तुा के विश्ले षण ने यह दर्शाया है कि 96% टिप्‍पणियों में स्वाीस्य्सम प्रणालियों के स्त म्भोंस के सुदृढ़ीकरण को सम्बोगधित किया गया है जैसा कि तालिका 1 में सारणीबद्ध किया गया है। दस टिप्पदणियों में पृथक-पृथक रोगों/स्थि तियों को सम्बोधधित किया गया है और भागीदारों द्वारा इनका प्राथमिकता निर्धारण किया गया है। इनका सारांश बॉक्स 1 में दिया गया है।

तालिका 1 टिप्पहणियों का विषयपरक विश्ले षण (लोकप्रियता के क्रम में)

क्रम सं. विषय टिप्‍पणियों का सं.
1. स्‍वास्‍थ्‍य के लिए मानव संसाधन 87
2. सेवा उपलब्‍धता
(i) पहुंच, निरंतरता तथा सेवा का संगठन
(ii) तृतीयक तथा आपात सेवा
(iii) देखभाल की गुणता
(iv) सामुदायिक भागीदारी और ग्राहकों के अधिकार
कुल 56
34
11
6
5
3. जन-स्‍वास्‍थ्‍य 53
4. दवाओं, आहार और चिकित्‍सा पद्धति का विनियमन 46
5. प्रबंधन और अभिशासन 45
6. वित्‍तीय संसाधनों की बढ़ोतरी 45
7. स्‍वास्‍थ्‍य सूचना प्रणाली 33
8. औषधियों, टीकों और अन्‍य उपभोज्‍य वस्‍तुओं की उपलब्‍धता 17
9. उपलब्‍ध वित्‍तीय संसाधनों का कुशलता के साधन के रूप में उपयोग करना 4

*42 टिप्पतणियां इस विचार-विमर्श से संबंधित नहीं थी।

बॉक्सध 1 वर्तमान कार्य-निष्पामदन और क्षमता के बीच अंतर को समाप्त‍ करने के लिए पृथक-पृथक रोग आधारित कार्यनीतियों से संबंधित विषय-वस्तुा

  1. बहु-विशेषज्ञ अस्पबतालों की बजाय रोग-विशिष्टम अस्प तालों की स्थाकपना की जानी चाहिए।
  2. जन्मिजात कमियों का पता लगाने के लिए नवजात की जांच की जानी चाहिए।
  3. दुर्घटनाओं अथवा आनुवंशिक दशाओं की वजह से नि:शक्त हुए व्यपक्तिंयों के लिए किफायती देखभाल की उपलब्धअता होनी चाहिए।
  4. मानसिक स्वाअस्य्नी संबंधी समस्या ओं का समाधान करने के लिए व्याोपक कार्यनीतियां होनी चाहिए।
  5. अंग-दान के बारे में और अधिक जागरूकता होनी चाहिए और इसके साथ ही स्वाधस्य् ल व्याअवसायिकों द्वारा इसे सुसाध्यर बनाया जाना चाहिए।

स्वाअस्य्िक प्रणालियों के सुदृढ़ीकरण के स्त म्भों के तहत विषय-वस्तुि का सारांश:

    1. स्वाअस्य्िक के लिए मानव संसाधन (एचआरएच)

अनुभव की गई समस्‍याएं:

      1. विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्‍वास्‍थ्‍य के लिए मानव संसाधनों की कमी है। इसके लिए निम्‍नलिखित कारकों को उत्‍तरदायी ठहराया जा सकता है- स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रदाताओं के परिवार के सदस्‍यों के लिए सेवाओं की कमी तथा सेवा प्रदाताओं के लिए उचित आवासीय सुविधाओं की कमी; कम वेतन पर संविदागत रोजगार और अत्‍यधिक कार्यभार। (Shrikant Tekade, Dr B B Nagargoje, parvinder Singh Chauhan, Poornananda Acharya, Kapil Dev Singh)
      2. विशेष रूप से ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में जन-स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं में डॉक्‍टरों की अनुपस्‍थिति का स्‍तर बहुत अधिक है। (Chitransh NagwanshiZulkharnine Sultana)
      3. दवा  की वैकल्‍पिक पद्धतियों में स्‍वास्‍थ्‍य के लिए उपलब्‍ध और अर्हता-प्राप्‍त मानव संसाधनों के उपयोग की कमी है और एलोपेथी की तुलना में दवा की इन पद्धतियों के व्‍यवसायिकों के विरूद्ध अत्‍यधिक पूर्वाग्रह है। (Shrikant Tekade, Saketh Ram Thrigulla, Dr Jaideep Kumar, Yashwant Mehta) इसके अतिरिक्‍त, उदाहरण के लिए, आयुर्वेदिक डॉक्‍टरों को चिकित्‍सीय और नैदानिक जांच के प्रयोजन से डाइलेशन और क्‍योरटेज, चीरा और ड्रेनेज, एक्‍सीजन और विभिन्‍न गर्भ-निरोधक पद्धतियों जैसे कि आईयूसीडी (इन्‍ट्रा यूट्रीन गर्भ-निरोधक उपकरण) को अन्‍त:-स्‍थापित करने जैसी विभिन्‍न प्रक्रियाओं से वर्जित किया गया है। (Dr Jaideep Kumar)
      4. शिक्षा की लागत, सीटों की संख्‍या और गुणता मानकों के संबंध में चिकित्‍सा और पराचिकित्‍सा शिक्षा के विनियमन की कमी है।(SUCHITRA RAGHAVACHARI, G. Bansal, Praveen (a, b, c), Anand Verma, Rakesh Sood)
      5. कुछ जाली संस्‍थाएं हैं जो बीएएमएस के सदृश डिग्री/डिप्‍लोमा प्रदान करती हैं। (Dr Jaideep Kumar)

सुझाव:

      1. व्‍यावसायिकता, जवाबदेही और निष्‍पक्षता की संस्‍कृति के साथ कारगर मानव संसाधन प्रबंधन नीति और सिद्धांतों की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए। (AJAY GUPTA, ACCESS Health International, Banuru Muralidhara Prasad, Jacob John, Haresh Patel, Ashish Mahajan)
      2. विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उचित डॉक्‍टर-मरीज अनुपात स्‍थापित करने के लिए डॉक्‍टरों की कमी को पूरा किया जाना चाहिए। (Ashok Kumar, Gita Bisla, krishna poddar, Praveen, SUCHITRA RAGHAVACHARI, Manoj Goel, Harsh Patel, Yaman Agrawal)
      3. मेडीकल कॉलेज की सीटें बढ़ाने की जरूरत है (Praveen , Awanish Kumar); सभी राज्‍यों को, संभवत: पीपीपी रीति से, प्रत्‍येक जिले में मेडीकल कॉलेज और अस्‍पताल स्‍थापित करने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। (Praveen) विकल्‍पत:, प्रत्‍येक वर्ष स्‍नातक की उपाधि प्राप्‍त करने वाले छात्रों की संख्‍या को बढ़ाने के लिए मौजूदा मेडीकल कॉलेजों में सांयकालीन कक्षाएं शुरू की जा सकती हैं (Ajesh K Agrawal) । प्राइवेट कॉलेजों की बजाय सरकारी मेडीकल कॉलेज स्‍थापित करने हेतु अधिक निवेश किया जाना चाहिए। (AJAY GUPTA (a, b)
      4. नए मेडीकल स्‍नातकों, स्‍नातकोत्‍तरों और मौजूदा डॉक्‍टरों को जन-स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं में और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। (Dr B B Nagargoje, Poornananda Acharya, Vineet Kini) सुझाए गए उपायों में निम्‍नलिखित शामिल हैं:
  1. डॉक्‍टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए अनिवार्य सुविधाओं (उदाहरण के लिए बच्‍चों के लिए शिक्षा) की उपलब्‍धता में सुधार किया जाए। ( G. Bansal, Shrikant Tekade, Kapil Dev Singh)
  2. विषम क्षेत्र में की गई सेवा के प्रत्‍येक वर्ष हेतु प्रोत्‍साहन का प्रावधान करना। (Vikash Bagri)
  3. तैनातियों का क्रमावर्तन (रोटेशन) किया जा सकता है ताकि जिलों में तैनात किए गए डॉक्‍टरों को परिधीय स्‍थलों पर भी तैनात किया जाए और जिला तैनातियों का प्रोत्‍साहन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। (G. Bansal)
  4. 10 वर्ष की अनिवार्य ग्रामीण सेवा के विधिक प्रावधान के साथ छात्रों को एमबीबीएस और स्‍नातकोत्‍तर डिग्री पाठ्यक्रमों की नि:शुल्‍क सुविधा दी जा सकती है। (Anil Kumar)
  5. विनियामक उपाय: मेडीकल छात्रों के लिए निम्‍नलिखित उपायों को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए: डिग्री प्राप्‍त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करना/नए स्‍नातकों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करना (Subha Satapathy, Himanshumurari Rai, Bhola, VishnuKumarMeena); सरकारी मेडीकल कालेजों में अध्‍ययन करने  वालों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करना अनिवार्य बनाना अथवा विकल्‍पत: सरकार को प्रतिपूर्ति करना (Anil Kumar; स्‍नातकोत्‍तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश को उन्‍हीं तक सीमित करना जो ग्रामीण क्षेत्रों में न्‍यूनतम वर्षों तक सेवा करने से संबंधित शर्त को पूरा करते हों (Venugopala Prasad); स्‍नातकोत्‍तरों को उनके पसंद के केन्‍द्र पर डिग्री प्रदान करने से पहले उनके लिए दो वर्ष की सेवा निर्धारित करना (AJAY GUPTA)।
  6. प्रशिक्षुता की अवधि को बढ़ाकर दो वर्ष किया जा सकता है और ग्रामीण सेवा के लिए दूसरे वर्ष में नियमित वेतन का भुगतान किया जा सकता है; सभी स्‍नातकों के लिए ग्रामीण प्रशिक्षुता की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए (Rathin Patel, Burzes Batliwalla)।
  7. सभी प्राइवेट डॉक्‍टरों को पंद्रह दिनों में कम-से-कम एक बार ग्रामीण पीएचसी में सेवा करने के लिए प्रोत्‍साहित करना। (ADITYA KUMAR PATHAK)
  8. सरकारी डॉक्‍टरों के वेतनमान को सुधारने की जरूरत है ताकि उन्‍हें प्राइवेट प्रैक्‍टिस अपनाने से रोका जा सके। (Ashish Mahajan, Harsh Patel)
  9. स्‍थानांतरणों के संबंध में सख्‍त नीति होनी चाहिए। राज्‍य को क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है और सभी डॉक्‍टरों के लिए निश्‍चित वर्षों के लिए प्रत्‍येक क्षेत्र में कार्य करना अपेक्षित किया जाए। (Vikash Bagri)
      1. उपलब्‍ध मानव संसाधनों की क्षमता को बढ़ाने के लिए आयुष (आयुर्वेद योग और प्राकृतिक चिकित्‍सा, यूनानी, सिद्ध और होम्‍योपेथी) में अर्हता-प्राप्‍त प्रैक्‍टिशनरों की सेवाओं का उपयोग करें। सुझाए गए उपायों में निम्‍नलिखित शामिल हैं: ब्रिज पाठ्यक्रम, सेवाएं प्रदान करने के लिए आयुष डॉक्‍टरों के प्रमाणीकरण हेतु भारतीय चिकित्‍सा परिषद् द्वारा परीक्षा का आयोजन, एलोपेथिक सेवा शुरू करने से पूर्व एमबीबीएस डॉक्‍टरों के अधीन प्रशिक्षुता की अवधि, एलोपेथिक सेवाओं के साथ इन सेवाओं के एकीकरण के स्‍तर को निश्‍चित करना। (Pranav bhardwaj, Saketh Ram Thrigulla, Kamal Sethi, vinay bhatt, chandravikas rathore, Vijay Ganbote, Sumit Mehta, Sachin Gupta, Vineet Kini, Dr Jaideep Kumar)
      2. उचित नियोजन योजना के विकास के माध्‍यम से स्‍वास्‍थ्‍य कार्यबल में अनौपचारिक स्‍वास्‍थ्‍य प्रदाताओं के विशाल नेटवर्क को एकीकृत करना; सेवाएं प्रदान करने के लिए उच्‍च प्रशिक्षण-प्राप्‍त गैर-चिकित्‍सक स्‍वास्‍थ्‍य प्रदाताओं की सेवाओं का उपयोग करना। (ACCESS Health International, Saurabh Kunal, Nachiket Mor)
      3. ऐसे मेडीकल प्रैक्‍टिशनर तैयार करने हेतु एक डिप्‍लोमा पाठ्यक्रम होना चाहिए जो ग्रामीण क्षेत्रों में देखभाल की पहली पंक्‍ति के रूप में कार्य कर सकें। (Venugopala Prasad)
      4. सम्‍बद्ध स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यावसायिकों की शिक्षा में मानकों को सुनिश्‍चित करने हेतु एक पृथक विनियामक प्राधिकरण की स्‍थापना के माध्‍यम से नर्सों और सम्‍बद्ध स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यावसायिकों की उपलब्‍धता को बढ़ाने की जरूरत है। (SUCHITRA RAGHAVACHARI)
      5. नर्सिंग और फार्मेसी कॉलेजों को उसी अथवा समीपवर्ती क्षेत्रों में बड़े अस्‍पतालों के साथ गठबंधन करना चाहिए ताकि छात्र प्रशिक्षण प्राप्‍त कर सकें और तत्‍पश्‍चात् उस क्षेत्र की स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं में सेवा प्रदायगी में योगदान दे सकें। (AMIT MEENA (A, B)
      6. अन्‍य विशेषज्ञताओं की तुलना में फैमिली मेडीसिन में प्रशिक्षित डॉक्‍टरों की संख्‍या को बढ़ाया जाना चाहिए। (Venugopala Prasad)
      7. निवारक, आरोग्‍यकर और प्रशासनिक सेवाएं प्रदान करने वाले डॉक्‍टरों को कुशलतापूर्वक अलग-अलग किया जाना चाहिए ताकि एक निश्‍चित कार्य में सक्षमता सुनिश्‍चित की जा सके। प्रशासनिक पदों पर अत्‍यधिक अर्हता-प्राप्‍त विशेषज्ञ डॉक्‍टरों को तैनात नहीं किया जाना चाहिए क्‍योंकि इससे वे अपने प्रशिक्षण का उचित उपयोग करने से वंचित हो जाते हैं। (AJAY GUPTA)
      8. भारतीय चिकित्‍सा पाठ्यचर्या में पीएचसी प्रबंधन प्रशिक्षण मोड्यूल शामिल किया जाना चाहिए ताकि इस क्षेत्र में क्षमता निर्माण सुनिश्‍चित किया जा सके। विकल्‍पत:, इन सुविधाओं के कार्यकरण को सुधारने के लिए जन-स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं के अंतर्गत प्रशासन और प्रबंधन में प्रशिक्षित जनशक्‍ति का उपयोग करने का सुझाव दिया जाता है। (Shailesh and Aman, Yaman Agrawal, arun arya)
      9. परामर्श के दौरान उदासीनता, रोगियों के प्रति डॉक्‍टरों की अधीरता, प्रत्‍येक रोगी को पर्याप्‍त समय देने की अनिच्‍छा के कारणों का मूल्‍यांकन किया जाना चाहिए और उनका समाधान किया जाना चाहिए। विशेषकर सरकारी अस्‍पतालों, जहां रोगियों की संख्‍या बहुत अधिक होती है, में कार्यरत डॉक्‍टरों को तनाव को कारगर ढंग से प्रबंधित करने हेतु प्रशिक्षित किया जा सकता है। (Himanshumurari Rai, Maheswari Reddy, Amiya Behera, HP JALAN, prabhat sharma)
      10. मेडीकल कॉलेजों में शिक्षण के मानकों को सुधारने की जरूरत है। (HP JALAN, Harsh Patel)
      11. प्राइवेटमेडीकल कॉलेजों में शुल्‍क और चंदे की पद्धति की दृष्‍टि से मेडीकल चिकित्‍सा के विनियमन की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए। मेडीकल कॉलेजों में स्‍नातकोत्‍तर सीटों के प्रतिधारण (रिटेनशन) का समाधान करने के लिए सामाजिक जांच का भी उपयोग किया जा सकता है। (SUCHITRA RAGHAVACHARI, G. Bansal, AJAY GUPTA, Praveen)
      12. डिग्री प्रदान करने वाली जाली संस्‍थाओं को कानूनी नोटिस जारी किए जाने चाहिए (Dr Jaideep Kumar)।
      13. मेडीकल कॉलेजों में ग्रामीण छात्रों, जिनके माता-पिता गांवों में रहते हैं, के लिए सीटों का आरक्षण होना चाहिए ताकि अध्‍ययन के बाद गांव के पास ही रहने और उन क्षेत्रों में कार्य करने में उनकी रूचि हो। (KEERTI BHUSAN PRADHAN)
      14. शीर्षतम पदों के लिए सीधी भर्ती करने की बजाय सबसे निचले स्‍तर के कामगारों को शीर्षतम पदों पर पदोन्‍नति पाने के अवसर दिए जाएं ताकि सबसे निचले स्‍तर पर कार्य करने के अनुभव का प्रभावी रूप से उपयोग हो सके। (AJAY GUPTA)
      15. भर्ती और पदोन्‍नतियों में पारदर्शिता होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्‍चित किया जा सके कि मेधावी छात्रों को भ्रष्‍टाचार के किसी प्रभाव के बिना नियोजित किया जाए। सुझाए गए उपायों में रिक्‍त पदों को विज्ञापित करने हेतु एक केन्‍द्रीय पोर्टल का सुझाव भी शामिल है। (Shailesh and Aman, Banuru Muralidhara Prasad, AJAY GUPTA)
      16. अनुपस्‍थिति की प्रवृत्‍ति को रोकने के उपाय किए जाने चाहिए, उदाहरण के लिए उपस्‍थिति का हिसाब रखा जाना चाहिए और अनुपस्‍थिति के दिनों की एक निश्‍चित प्रतिशतता के बाद जुर्माना लगाया जा सकता है। (Poornananda Acharya, Vikash Bagri)
      17. उत्पाबदकता बढ़ाने के लिए स्वानस्य्1 कामगारों का नियमित और प्रभावी रूप से कौशल संवर्धन किया जाना चाहिए।

 

    1. सेवा प्रदायगी

 

      1. क. पहुंच, निरंतरता तथा सेवा का संगठन
        अनुभव की गई समस्या एं:

        1. ग्रामीण क्षेत्रों में क्रियाशील स्‍वास्‍थ्‍य सेवा सुविधाओं की स्‍थापना और प्रचालन करने की जरूरत है। (Chandra shekhar)
        2. सार्वजनिक क्षेत्र की मौजूदा स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं, संसाधनों की कमी की वजह से जनता को सेवाएं प्रदान करने हेतु सज्‍जित नहीं हैं। अत: गरीबों के लिए सेवाएं अनुपलब्‍ध हैं। (maninderjit singh, Harsh Patel, Chandra shekhar, shailendra singh, krishna poddar, hemant mathur, manoj kumar swain, kakarla sundar ganesh, manjit, parvinder Singh Chauhan)
        3. उपलब्‍ध जन-स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं में स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल संबंधी सेवाओं की मांग करने वाले बहुसंख्‍यक रोगियों के लिए क्षमता नहीं है। (Hitesh Bansal, Arvind Singh, MANISH PANDEY)

सुझावः

        1. भौगोलिक कारकों तथा जनसंख्या घनत्व मानदंडों के अनुसार, गांवों से उच्चतर स्तरों तक स्वास्थ्य सुविधाओं का नेटवर्क अनिवार्य रूप से स्थापित किया जाना चाहिए जिसमें अवसंरचना, मानव संसाधनों तथा औषधियों और उपकरण के पर्याप्त संसाधन हों, ताकि समुचित स्तर(प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक) की स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें। (rajeev kumar, Bhola, Bharat Sanyal, ASHMA RANI, rajesh kumar sethi, Preetha Premjith, arun arya, Awanish Kumar, malaya parida)
        2. मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं की क्षमता बढ़ाए जाने की आवश्यकता है ताकि रोगियों की बढ़ती संख्या के अनुरूप बने रहें और प्रतीक्षा का समय कम हो।(Hitesh Bansal)
        3. स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मज़बूत बनाने के लिए,पहले स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियादी इकाई,यथा- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और आंगनवाड़ी केंद्रों को सुदृढ किया जाना चाहिए। (AMIT MEENA, Saurabh Sinha)
        4. निम्नतम स्तर पर एक सशक्त स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अनिवार्य रूप से स्थापित की जानी चाहिए जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में विभिन्न स्तरों के स्वास्थ्य प्रोफेशनल हों जिनमें पैरा-क्लिनिकल, क्लिनिकल, नर्स तथा फिजिशियन शामिल हैं जिन्हें आबादी के स्वास्थ्य परिणामों के प्रति उत्तरदायी बनाया जाए और जो समुदाय के लिए प्रथम सम्पर्क बिंदु के तौर पर रहें(ACCESS Health International)।
        5. सुदृढ प्राथमिक तथा द्वितीयक स्वास्थ्य केंद्रों से तृतीयक स्वास्थ्य केंद्रों में भेजने के लिए कुशल लिंक होने चाहिए ताकि दुहराव न होने पाए और इन केंद्रों में अत्यधिक भीड़ से बचा जा सके।(Ajay Bhargava, G. Bansal)
        6. प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के सुदृढ नेटवर्कों को द्वितीयक और तृतीयक सेवा सुविधाओं के साथ एकीकृत किया जाना चाहिएजिनमें पर्याप्त गेटकीपिंग व्यवस्था हो ताकि प्राथमिक सेवा का कम उपयोग हो और न ही तृतीयक सेवा का ज़रूरत से ज़्यादा उपयोग हो जिनके कारण दुहराव होता है और इन केंद्रों पर भीड़ बढ़ती है। (Ajay Bhargava, Nachiket Mor, ACCESS Health International)
        7. पूर्ण स्वास्थ्य कवरेज के प्रावधान में निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए सुझाई गई एक प्रणाली यह है कि निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाओं को समान प्रदाता के नेटवर्कों(प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक) में संगठित कर दिया जाए और यह प्रणाली में पैनलबद्धता की अनिवार्य पूर्व-शर्त होनी चाहिए। अतः, रोगियों की देखभाल की लागत नेटवर्क के स्तर पर होगी और इससे अनावश्यक तथा अत्यधिक देखभाल भी रूकेगा और प्राथमिक देखभाल और रोग की रोकथाम आसान होगी।(Nachiket Mor)
        8. ग्रामीण इलाकों में रेलवे स्टेशनों पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए रेल-समर्थित चल चिकित्सा इकाई स्थापित की जानी चाहिए। इनकी स्थापना प्रत्येक ज़िले के लिए की जाए और यह प्रत्येक ग्रामीण स्टेशन पर हर तीन महीने में एक बार जाए। समग्र सेवा प्रबंधन तथा यथावश्यक रूप से रोगियों को रेफर करने हेतु इस इकाई को ज़िले के तृतीय स्तरीय अस्पताल के साथ जोड़ दिया जाए। इस प्रकार की सेवा आपदापीड़ित इलाक़ो में भी उपयोगी होगी।(Nagendrasena Manyam)
        9. शैक्षिक संस्थानों के परिसरों में प्रचालित औषधालयों को आम जनता के लिए खोल दिया जाना चाहिए ताकि सेवाओं की उपलब्धता बढ़े(जैसे- परिसरों में बैंक और डाकघर)। (chandravikas rathore)।

 

      1. तृतीयक और आपात सेवा

अनुभव की गई समस्याएं

        1. सरकारी अस्पतालों में आपातकालीन वार्डों की हालत ख़राब है।(Himanshumurari Rai)

सुझावः

        1. तृतीयक स्तरीय अस्पताल(एम्स जैसी सेवाएं दे सकने वाले) सभी ज़िलों/राज्यों में उपलब्ध होने चाहिए ताकि तृतीयक स्तरीय सेवाएं मिल सकें। इस प्रयोजनार्थ ज़िला अस्पतालों को सुदृढ किया जाना चाहिए। इन केंद्रों की क्षमता और स्थान जनसंख्या तथा भौगोलिक आवश्यकता के अनुरूप होने चाहिए।(Sachin Gupta, malaya parida, AJAY GUPTA, hemant mathur, Arvind Singh, AJAY GUPTA)
        2. भारत में उन तृतीयक स्तरीय सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए क्षमता का निर्माण अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए जिनका फिलहाल अभाव है।(HP JALAN)
        3. सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए अनिवार्य तथा त्वरित आपात सेवा की नीति बनाई जानी चाहिए।(AJAY GUPTA)
          iv.    द्विचक्री चल मोबाइल एम्बुलेंस की शुरूआत की जानी चाहिए जिसमें व्यस्त शहरों में दुर्घटनापीड़ितों को अस्पताल में स्थानान्तरित किए जाने तक के लिए आपात सेवा उपलब्ध कराने की सुविधा हो।
        4. शहरों में एयर एम्बुलेंस सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। अस्पतालों को ऐसे एम्बुलेंस के लिए हेलीपैड बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। (Nagendrasena Manyam)
        5. दुर्घटनापीड़ित का आपातकालीन इलाज़ करने के लिए डाक्टर को पुलिस का इन्तज़ार करने के प्रावधान को हटा लिया जाना चाहिए। (HP JALAN)

 

      1. चिकित्सा गुणवत्ता

अनुभव की गई समस्याएं

        1. रोगियों को सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर स्तरीय सेवाएं लेने का अधिकार नहीं है/सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की चिकित्सा गुणवत्ता सर्वाधिक चिंता का विषय है। (hemant mathur, Sangeeta Tikyani)

सुझावः

        1. चिकित्सा स्तर की एक माप्य मानक होना चाहिए जिसमें रोगी की सुरक्षा, आराम, संतुष्टि और इलाज़ के परिणाम शामिल हों। इसके साथ ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिए जिससे सेवा प्रदाता प्रेरित हों और मानकों का पालन सुनिश्चित करें(मापन तथा प्रमाणन हेतु प्रोत्साहन, क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकीय सहायता तथा सांस्थानिक व्यवस्थाएं)।( ACCESS Health International)
        2. सभी स्वास्थ्य केंद्रों के लिए एक रैंकिंग प्रणाली विकसित की जानी चाहिए और इस सूचना को इंटरनेट पर निश्चित रूप से डाला जाना चाहिए।(HP JALAN)

 

      1. सामुदायिक सहभागिता तथा ग्राहक के अधिकार

सुझावः

        1. स्वास्थ्य सेवाओं का समुदाय आधारित अनुवीक्षण और आयोजना(सीबीएमपी) लोक स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था के निष्पादन को बेहतर करने में उपयोगी प्रमाणित हो चुकी हैं क्योंकि इससे उत्तरदायित्व,सेवाओं की प्रत्युरता और जनभागीदाही में वृद्धि हुई है। महाराष्ट्र राज्य में 2007 से अब तक का अनुभव बताता है कि सीबीएमपी से जांच-निदानशाला सेवाओं, रेफरल सेवाओं, आईपीडी, ओपीडी और प्रसव सेवाओं के मामले में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का निष्पादन बेहतर हुआ है। (Ashwini Devane)
        2. सरकारी और निजी स्वास्थ्य केंद्रों से जुड़ी शिकायतें प्राप्त करने के लिए सभी ज़िला अस्पतालों में शिकायत निवारण प्रकोष्ठ अनिवार्य रूप से स्थापित किया जाना चाहिए। (G. Bansal)
        3. शिकायतों/सुझावों के लिए एक शिकायत पंजी अवश्य होनी चाहिए जिसे ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि स्वास्थ्य मंत्रालय उसे सीधे तौर पर देख सके।(Preetha Premjith)

 

    1. लोक स्वास्थ्य

अनुभव की गई समस्याएं:

      1. ग्रामीण इलाक़ों में बीमारियों की मुख्य वज़ह सफाई का न होना है (Saurabh Sinha)

सुझाव:

      1. स्वास्थ्य शिक्षा तथा जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए(Dr Arpan Shastri, kuldeep singh shekhawat, Neelesh Dave, HP JALAN, Ashish Mahajan, Haresh Patel, Prashanth Annadi, Jay Chan, Kamal Sethi, Mahesh Pralhad Shelke, Preetha Premjith, suriya krishna B S)।
      2. स्वास्थ्य शिक्षा को विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए(Ganesan RP, Sangeeta Chawla, Mahesh Pralhad Shelke. घरेलू उपचार संबंधी ज्ञान और उसके उपयोग को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए(yashwant mehta)।
      3. जनसंख्या नियंत्रण पर ज़ोर दिया जाना चाहिए जिससे प्रभावी कार्यक्रम कार्यान्वयन में मदद मिलेगी (Dr Swapan Banerjee, mahipal rawat, bharati, avanish sharma, GANESH P R, YADVENDRA YADAV, Vishwamitra Manav)।
      4. सफाई और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओंपर ज़ोर दिया जाना चाहिए (Saurabh Sinha, kuldeep singh shekhawat, Harsh Patel, Jay Chan, Manoj Goel, manpreet, suriya krishna B S)।
      5. व्यायाम, उचित पोषण और योग पर बल दिया जाना चाहिए (kuldeep singh shekhawat, Seema Singh, Abhishek Raval, Manoj Goel, rajesh kumar sethi)
      6. कम कीमत पर पोषक आहार उपलब्ध कराने की पुख़्ता व्यवस्था होनी चाहिए (Bharat Sanyal)।
      7. विद्यालय में बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए (Shri Mad Bhagwat Geeta Primary School)।
      8. पूर्ण स्वास्थ्य कवरेज से पहले पूर्ण स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए तथा प्रत्येक ब्लॉक की उच्च जोखिम वाली आबादी की सूची स्थान य चिकित्सा अधिकारी को कार्रवाई हेतु उपलब्ध कराई जानी चाहिए(Shailesh and Aman)।
      9. उष्णकटिबंधीय रोगों के लिए व्यापक जांच होनी चाहिए (neeta kumar)।
      10. मच्छरजनितरोगों की रोकथाम के लिए नगर निगमों को कम कीमत पर मच्छरदानी उपलब्ध कराना चाहिए (Naresh Grover)।
      11. वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की क्षमता का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए ताकि स्वास्थ्य को बढ़ावा मिले और रोगों की रोकथाम हो(Rakesh Sood)।
      12. अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए (Jay Chan)।
      13. शारीरिक सक्रियता के अनुरूप आहार लेने की कार्यनीति भी अपनाई जानी चाहिए ताकि स्वास्थ्य परिणाम बेहतर हों। उदाहरण के लिए,खाद्य ऊर्जा के लिए कार्बन प्रोत्साहन,निष्पादन-आधारित प्रोत्साहन तंत्र(Raghavendra Guru Srinivasan)।

 

    1. स्वास्थ्य सूचना प्रणाली(एचआईएस)

अनुभव की गई समस्याएं:

      1. कनेक्टिविटी और बिजली जैसे मुद्दों, अवसंरचना, फील्ड कार्यान्वयन और सांस्कृतिक स्वीकार्यता जैसे कारकों के कारण मौजूदा टेलीमेडिसिन का पूरे ग्रामीण भारत में विस्तार नहीं किया जा सकता (Saurabh Sinha)।
      2. इस एकल डेटा मानक के अभाव के कारण, देश में कई उभरती सूचना प्रणालियां सब जगह कार्यशील नहीं हो पातीं (ACCESS Health International)।

सुझाव:

      1. निष्पादन और संभावना के बीच की कमी को पूरा करने के लिए,सूचना संचार प्रौद्योगिकी(आईसीटी) का प्रभावी तरीक़े से उपयोग किया जाना चाहिए(Zulkharnine Sultana)।
      2. ग्रामीण इलाकों में इन सेवाओँ के उपयोग के लिए उच्च गति वाला ब्रॉडबैण्ड कनेक्शन लगाया जाना चाहिए (Ravinder Mandayam)।
      3. एक सशक्त सूचना प्रणाली की दिशा में पहला क़दम यह होना चाहिए कि एक साझा डेटा डिक्शनरी बनाई जाए तथा अनुपालन की कार्यनीतियां हों और सभी डेटा स्रोत एकीकृत हों। इससे डेटा तिनतरफा तरीक़े से उपलब्ध होंगे तथा शासन, अनुवीक्षण, निर्णय लेने संबंधी कई पहलू स्वचालित हो सकेंगे। इससे अधिक लक्षित लेखापरीक्षा भी की जा सकेगी (ACCESS Health International)।
      4. क्षेत्र के लिए एकीकृत स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली होनी चाहिए जिसमें निम्नांकित डेटा होः क्षेत्र की विशेषता(गांवों की संख्या, स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या, जनसंख्या), विभिन्न कार्यक्रम(एनआरएचएम, आरएनटीसीपी आदि), रोग के प्रसार संबंधी स्वास्थ्य सूचना, स्वास्थ्य सर्वेक्षण, माल-सूची प्रबंधन, मानव संसाधन(उपलब्ध संख्या तथा प्राप्त प्रशिक्षण)(विस्तृत प्रारूप प्रतिभागी द्वारा प्रदत्त) (Anil Kumar)।
      5. आधार संख्या प्रत्येक बच्चे को उपलब्ध कराई जानी चाहिए तथा एचआईएस का उपयोग कर विभिन्न सेवाओं के लिए उसका प्रभावी उपयोग होना चाहिए। सुझाए गए उपायों में शामिल हैं:
  1. इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकार्ड सृजित करना जो प्रवासियों के सेवाएं लेने के लिए लाभकारी होगा(SUCHITRA RAGHAVACHARI, Awanish Kumar, sangeeta upadhyay, sachin garg)
  2. टीकाकरण, स्वास्थ्य शिविरों आदि के बारे में नागरिकों को एसएमएस से जानकारी दी जानी चाहिए(Nagendrasena Manyam)।
  3. वास्तविक रूप से ज़रूरतमंदों को स्वास्थ्य स्कीमों के दायरे में लाना।
      1. सभी अभिलेखों को अस्पतालों में डिजिटल रूप दिया जाना चाहिए (DatchanaMoorthy Ramu)।
      2. अस्पतालों को ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट लेने का प्रावधान देना चाहिए (Ashok Kumar)।
      3. ई-स्वास्थ्य रिकार्डों को मरीजों की सहमति से ही साझा किया जाए कि वे इनको सभी स्वास्थ्य प्रदाताओं अथवा कुछ विशिष्ट प्रदाताओं के साथ ही साझा करना चाहते हैं। वैकल्पिक रूप से केवल सरकारी चिकित्सालयों के माध्यम से रिकॉर्ड रखने का नियम होना चाहिए (Bharat Parekh)।
      4. गांवों को शहरी चिकित्सकों से जोड़कर ग्रामीण टेलीमेडिसन को प्रभावी बनाया जा सकता है। सुझाये गये उपायों में इंटरनेट कियोस्कों के माध्यम से निम्न श्याम-श्वेत विडियो-कॉनफ्रेंसिंग, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के सहयोगियो के साथ फील्ड परिनियोजन प्रयोगों और न्यूरोसिनॉप्टिक के साथ बहु-मानदंडों के नैदानिक जांचों का विकास शामिल है। ये सुविधाएं ग्रामीण चिकित्सकों की कमियों को भी पूरा करने में सहायता करेंगी (Saurabh Sinha)।
      5. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं प्रदान करने के लिए इंटरनेट और मोबाईल प्रौद्योगिकी का उपयोग होना चाहिए (Gates Foundation)।
      6. सूचना संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग में राज्यों द्वारा सिद्ध नवप्रवर्तनों को अपनाने और मापन क्षमता की जांच की जानी चाहिए (उदाहरणः मोबी कुंजी, बिहार में एक नोवल जोब-एड टूल)। (Saurabh Sinha)
      7. रक्तदाताओं का राज्य और शहर-वार राष्ट्रीय डाटाबेस होना चाहिए (Girish Parikh)।
      8. कार्यनिष्पादन और क्षमता के बीच अंतर को समाप्त करने के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्रीय ई-स्वास्थ्य प्राधिकरण एक उत्तम साधन है। (Zulkharnine Sultana, Bharat Parekh)

 

    1. दवाओं, आहार और चिकित्सा पद्धति का विनियमन

अनुभव की गई समस्याएं:

      1. चिकित्सकों और दवा कंपनियों के बीच गठ-जोड़-अत्यधिक-जांचों और अत्यधिक-दवाओं के कारण उपचार को महंगा बना देते हैं। (Prakash Tripathy)
      2. नकली दवाओं की बिक्री के कारण मरीजों को हानि पहुंचती है (Prakash Tripathy)। ऐसी नकली दवाएं और विभिन्न देशों में प्रतिबंधित दवाएं बिना किसी नियमन के हमारे देश में बहुत सी दवाइयों की दुकानों पर बेची जा रही हैं। (bssrao)
      3. एलोपैथिक दवाओं के मूल्य में अनियमित वृद्धि से मरीजों का जेब खर्च बहुत बढ़ जाता है (Aswin G)।
      4. निजी स्वास्थ्य क्षेत्रक में सेवाओं के मूल्यों के लिए कोई नियमन नहीं है, उदाहरण के लिएः
      5. चिकित्सालयों में शल्यक्रियाएँ (bssrao)
      6. नैदानिक जांचें और परीक्षण (G Bansal-NACO)
      7. सरकारी और निजी क्षेत्रकों में डॉक्टरों द्वारा अनुचित कार्य पद्धतियों पर कोई नियंत्रण नहीं है (G Bansal-NACO)। उदाहरण के लिए, कई सरकारी डॉक्टर प्राईवेट प्रेक्टिस करते हैं और प्राईवेट अस्पतालों को लोकप्रिय बनाते हैं (subhash mallick)
      8. डॉक्टरों द्वारा की जाने वाली निम्न अनुचित कार्य पद्धतियाँ देखी गई हैः-
      9. अस्पतालों के डॉक्टर मरीजों को अपने निजी क्लीनिक पर भेज देते हैं (Himanshumurari Rai)
      10. डॉक्टर मरीजों को उनके द्वारा सिफारिश किए गए रोगविज्ञानी/प्रयोगशालाओं/नैदानिक जांच से ही महंगे परीक्षण करवाने के लिए कहते हैं (Himanshumurari Rai)
      11. नर्सिंग होम और/या अस्पतालों में प्रक्रियाओं और सेवाओं की मूल्य सूची जनता के लिए उपलब्ध नहीं है (G Bansal-NACO)
      12. डॉक्टर मरीजों का रोग का निदान नहीं बताते हैं (Rajasekaran Chokalingam)
      13. स्कूलों के नजदीक शरीब की दुकानों के संचालन को रोकने वाले विनियम का कार्यान्वयन नहीं किया गया, जो कि युवा जनसंख्या के स्वास्थ्य संबंधित व्यवहारों के लिए हानिकारक है (mahipal rawat)
      14. खाद्य पदार्थों में मिलावट समस्या बनी हुई है (Mahendra Kumar)
      15. स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निविदाओं में शक्तिशाली आपूर्तिकर्ताओं के माध्यम से व्यवसायी समूहन है (Ajesh K Agrawal)।

सुझाव:

      1. सरकार को दवा नुस्खों में केवल जेनरिक दवां के नाम लिखने पर जोर देना चाहिए (SUCHITRA RAGHAVACHARI)
      2. दवाओं के मूल्यों को कम करने के लिए दवा कंपनियों के बेहतर तरीके से मॉनिटरण की आवश्यकता है। (SUCHITRA RAGHAVACHARI)
      3. बढ़ते हुए एंडीबायोटिक प्रतिरोध के साथ, एंटीबायोटिक दवाओं के नुस्खा लेखन और वितरण के लिए कठोर दिशानिर्देश जारी किये जाने की आवश्यकता है (SUCHITRA RAGHAVACHARI, Vikash Bagri)
      4. दवाओं की बिक्री केवल बार कोड प्रणाली के माध्यम से की जाए। बार कोड में दवा के ‘एमआरपी’ मूल्य और एक्सपायरी तारीख सहित पूरा ब्यौरा होगा। यह दवा बिक्री के समय किसी भी मानवीय भूल से बचाएगा (HP JALAN, polareddy srinivasareddy)
      5. दवाओं की आपूर्ति काउंटर के आधार पर न करके केवल क्लिनिक/अस्पतालों के नुसखों के आधार पर की जानी चाहिए (Sandip Das)
      6. अपेक्षित खुराक के आधार पर ही दवा वितरण होना चाहिए (utkarsh totla)
      7. दवाओं, परीक्षणों और डॉक्टर सलाह सेवाओं के मूल्य नियंत्रित करने और किफायती बनाने की आवश्यकता है (Burzes Batliwalla, Vikash Bagri, sachin garg, Praveen_27, krishna poddar)। सभी सरकारी अस्पतालों में सभी सेवाओं की नाममात्र कीमत होनी चाहिए (bharati_1)। अस्पतालों और क्लिनिकों के सभी कोनों में खर्चों का ब्यौरा लगा होना चाहिए ताकि गरीब/जरूरत मंदो से भ्रष्ट मध्यस्थों/स्टाफ द्वारा कोई अतिरिक्त खर्च न लिया जा सके (bharati_1)
      8. सभी अस्पतालों को एक अस्पताल बोर्ड के अधीन किया जाए जहाँ मेडिकल प्रेक्टिस का वार्षिक लेखा परीक्षण हो (Suchitra Raghavachari)
      9. अस्पतालों में आवश्यक रूप से आकस्मिक निरीक्षण होना चाहिए। (bharati_1)
      10. मरीजों को अवांछित परीक्षण करवाने वाले डॉक्टरों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए आवश्यक प्रावधान होने चाहिए (Praveen_27)
      11. डॉक्टर द्वारा लिए गए शुल्क के लिए प्रत्येक मरीज को रसीद दी जानी चाहिए (Praveen_27)
      12. निजी अस्पतालों में गरीब मरीजों के लिए आरक्षण होना चाहिए। (krishna poddar)
      13. चिकित्सा अधिकारी द्वारा लापरवाही से संबंधी समस्त मामलों की जांच सेवानिवृत्त वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों और एक नौकरशाह की समिति द्वारा की जानी चाहिए ताकि हितों के टकराव की किसी संभावना को समाप्त किया जा सके। मामले में जांच पूरी होने की समय सीमा तय की जाए और दोषी साबित होने पर मामले की गंभीरता के आधार पर चिकित्सा अधिकारियों और संस्थानों के प्रैक्टिस लाइसेंसों को निरस्त किया जाए (कम से कम एक वर्ष के लिए) ((G Bansal-NACO)
      14. नर्सिंग होम एक्ट/चिकित्सालय स्थापना अधिनियम के विनियमों को सख्ती से लागू किया जाए (G Bansal-NACO)
      15. संबंधित पणधारियों के साथ सलाह के माध्यम से निजी क्षेत्रक के विनियमन की एक नीति निर्धारित की जाए (Jacob John_2)
      16. मरीजों की अनुचित मांगों से चिकित्सा व्यवसायियों के बचाव के लिए सुरक्षा नीति होनी चाहिए। (Dr B B Nagargoje)

 

    1. प्रबंधन और अभिशासन

समस्याएं

      1. भ्रष्टाचार बजट आबंटनों के प्रवर्तनों को बाधित करता है (Maninderjit Singh)
      2. जब जन शिकायतें भेजी जाती हैं तो विभिन्न विभागों में समन्वय की कमी रहती है (Naresh Grover)
      3. सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रकों में स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं में विश्वास की कमी है। (Access Health International)
      4. भारत में स्वास्थ्य सेवाएं प्रबंधन की कमी से पीड़ित हैं (AJAY GUPTA)
      5. दवाओं के वितरण में भ्रष्टाचार है (Swati Choudhary) सरकार से प्राप्त दवाओं को दवा विक्रेताओं को बेच दिया जाता है (Kishan Sharma)

सुझाव:

      1. कार्य निष्पादन और क्षमता के अंतर को न्यूनतम करने के लिए अभिशासन और जवाबदेही तंत्र की स्थापना होनी चाहिए, उदाहरण के लिएः-
  1. सामाजिक जांच (Vijay C S, RajDev Sharma, Access Health International, Sumit Deb)
  2. परिणामों के लिए जवाबदेहिता बढ़ाने हेतु जन स्वास्थ्य सुविधाओं को स्वायत्तता प्रदान की जा सकती है। तुर्की ने सुधार किए हैं जहां प्राथमिक देखभाल प्रदाताओं को स्वायत्त बनाया गया है और उनको परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया गया है (Access Health International)
  3. प्रदान की गई सेवाओं के प्रावधान और इन सेवाओं के मॉनिटरण को सुनिश्चित करने के लिए राज्य जिम्मेवार है। सेवा प्रदायगी और जवाबदेहिता के मध्य यह विभाजन प्रत्येक के लिए एक व्यवसायिक केन्द्रण सुनिश्चित करेगा। अभिशासन स्तर पर, ऐसा तंत्र एक स्वायत्त इकाई के सृजन को अपरिहार्य बनाएगा जो कि प्रबंधन, निरीक्षण, वित्त और स्वास्थ्य प्रणाली का समग्र संचालन प्रदान कर सकता है। यह इकाई निजी और सार्वजनिक सेवा प्रदाताओं के साथ संविदा करने के लिए और इन सेवा प्रदाताओं के प्रभावी विनियमन को सुनिश्चित बनाने के लिए जिम्मेवार होगी। शासी इकाईयों को संबंधित मंत्रालयों, स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञों और समुदायों से भी प्रतिनिधित्व को शामिल करना चाहिए (Access Health International)
      1. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए सभी अस्पतालों में भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहिए ताकि नागरिक उनका विश्वास कर सकें (Ashok Kumar, Atul kaushik, Swati Choudhary)
      2. व्यय लेखों के लेखापरीक्षा को सख्त बनाना जिससे कि केन्द्र/राज्य सरकार से वित्तपोषित अस्पतालों से जुड़े प्रशासनिक कर्मचारियों द्वारा निजी लाभ के लिए संसाधनों की चोरी को पकड़ने को सुनिश्चित बनाया जा सके (Ravinder Mandayam)
      3. सामान्य अस्पताल में सुदृढ़ प्रशासन होना चाहिए जिसे सभी मरीजों की आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए। (Ajay Gupta)
      4. मूलभूत सुविधाओं जैसे स्वच्छ पेयजल के प्रावधान की आवश्यकता है। जल संसाधनों को गंदे पानी के संदूषण से बचाया जाना चाहिए। सभी शहरों और कस्बों में गंदा पानी उपचार संयंत्र होने चाहिए जिनको कि प्राथमिकता आधार पर कुछ प्रोत्साहन तरीकों के साथ निजी अथवा सीएसआर के तहत संचालित किया जाए। (Ganesan RP, Saurabh Sinha, Pavan Kumar Meeka, Jay Chan)
      5. सार्वजनिक शौचालयों को बनाने की अत्यावश्यकता है (Gopi Krishna G)
      6. स्वास्थ्य संबंधी जागरुकता पैदा करने के लिए आंगवाड़ी केन्द्रों पर स्वावलंबन समूह बनाने चाहिए (Jagdish Pathak)
      7. मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता में सुधार किया जाना चाहिए (Krishna poddar)
      8. पानी और स्वच्छता की स्थिति में सुधार करने और प्रदूषण से निपटने के लिए संबद्ध मंत्रालयों को स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए (Prakash Tripathy)
      9. स्थानीय जरूरतों के अनुसार स्वास्थ्य मानदंडों में सुधार करने के लिए विकेन्द्रित राज्य विशिष्ट नीतियों को अपनाना चाहिए (Murali Parneswaran)
      10. ऊर्ध्वस्तरीय आयोजना से हटकर कार्यक्रमों के समस्तरीय एकीकरण और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान केन्द्रित होना चाहिए (Access Health International, Bill and Melinda Gates Foundation)

 

    1. वित्तीय संसाधनों को बढ़ाना

अनुभव की गई समस्याएं:

      1. स्वास्थ्य के लिए वित्तीय कमी के कारण हर वर्ष काफी संख्या में लोग मर जाते हैं (Bharat Agarwal)।
      2. मौजूदा स्वास्थ्य बीमा योजनाएं जनता के लिए सीमित उपयोग वाली हैं। प्रतिस्पर्धा के कारण इनके बीमा प्रीमियम (किस्त) कम हैं, परन्तु इनका कवरेज बहुत सीमित है। इस प्रकार ये बीमा करवाने वाले व्यक्ति को कोई लाभ नहीं है (HP JALAN)।

सुझाव:

      1. ऐसे सभी परिवार जो विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में हैं जहां गरीबी ज्यादा है और स्वास्थ्य सुविधाएं कम हैं, के लिए वहनीय स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जाना चाहिए (durgesh kumar, maninderjit singh, Neelesh Dave, Sandip Das, Prajwal Niranjan, Ashish Mahajan, dr basuraj, Rajiv Ranjan Srivastava, Pranav bhardwaj) स्वास्थ्य बीमा योजनाएं कम प्रीमियम (किस्त) वाली होनी चाहिए (GURPREET SINGH_15)।
      2. यह ज्यादा अच्छा होगा कि इन स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का प्रीमियम बढ़ाया जाए, साथ ही इनकी कवरेज भी बढ़ाई जाए। स्वास्थ्य बीमा को कवरेज के मामले में उदार होना चाहिए (HP Jalan)।
      3. स्वास्थ्य के संबंध में अकस्मात् जेब से होने वाले व्यय को कम करने के लिए स्वास्थ्य बचत खाता की आवश्यकता है (Bharat Agarwal, Aarthi Seth, Manoj Grover_1)।
      4. स्वास्थ्य हेतु जन-धन खाते से मामूली धनराशि काटी जा सकती है (SHANMUGANATHAN B Balasubramaniam)।
      5. प्रीपेड स्वास्थ्य कवरेज हेतु वित्तपोषण करने वाले पूल में विविधता लाना और उसे विस्तारित करना तथा गरीबों को राज सहायता देना (Access Health International)।
      6. मरीजों के उपचार और उनके द्वारा उपयोग की गई सेवाओं हेतु सह-भुगतान होना चाहिए (Praneet Mehrotra)।
      7. स्वास्थ्य के लिए संसाधनों में वृद्धि करने के लिए तंबाकू और एल्कोहॉल (शराब) जैसी       गैर—जरूरी स्वास्थ्य मदों पर पाप कर लगाना चाहिए (Praneet Mehrotra)।
      8. सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए निगमित सामाजिक जिम्मेवारी को बढ़ावा देना चाहिए (Utkarsh Totla, Subha Satapathy, Shailesh Kumar Sharma, Suchitra Raghavachari)। हमें संसाधनों में वृद्धि करने के लिए वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य संगठनों से स्वास्थ्य समारोहों को आयोजित करना चाहिए (Neelesh Dave)। ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि प्रत्येक प्राइवेट अस्पताल को जन स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति योगदान करना चाहिए और संसाधनों को वित्तीय प्रतिबद्धता के बिना ठीक प्रकार निश्चित की गई कार्य दिशा पर बांटा जा सकता है (G K Sunil)।
      9. अस्पतालों को स्थापित करने और स्वास्थ्य क्षेत्रक में अन्य जरूरतों के लिए सरकारी–निजी भागीदारी मॉडल को लागू किया जाना चाहिए (Bhola, Rajeev Kumar, Vijay Kumar Tiwari, Manish Pandey)।
      10. सरकार को धन कमाने के लिए शैक्षणिक शिविर आयोजित करने चाहिए (Utkarsh Totla)।

 

    1. औषध टीका (वैक्सीन) और अन्य उपभोज्य वस्तुओं की उपलब्धता

अनुभव की गई समस्याएं:

      1. दूरस्थ स्थानों पर औषधालय नहीं हैं (Maninderjit Singh)।
      2. लॉगबुक के अनुसार सरकारी स्टोरों में कई दवाइयाँ उपलब्ध नहीं हैं (Zulkharnine Sultana)। सरकारी अस्पतालों के दवा स्टोरों में सभी दवाइयाँ मौजूद नहीं होतीं, मरीजों को दवाइयाँ प्राइवेट मेडीकल स्टोरों से ज्यादा कीमत पर खरीदनी पड़ती हैं (Himanshumurari Rai)।

सुझाव:

      1. चिकित्सा संबंधी उपस्करों/स्वास्थ्य देखभाल संबंधी उत्पादों का स्थानीय आधार पर विनिर्माण किया जाना चाहिए जिससे इन उपकरणों पर होने वाला व्यय कम हो सके (Suchitra Raghavachari, Archana R)।
      2. गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों के लिए सरकारी मेडीकल दुकानों की व्यवस्था की जा सकती है (Ujjwal Khanna)।
      3. ग्रामीण क्षेत्रों में जेनेरिक दवाइयों को उपलब्ध कराने वाली मेडीकल दुकानें खोलने का प्रावधान होना चाहिए ((Dr Navin Tiwari)।
      4. दवा और स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों के उत्पादन को बढ़ाने का प्रावधान होना चाहिए (Gita Bisla, Manoj Goel)।

 

    1. दक्षता बढ़ाने के लिए वित्त को एक साधन के रूप में उपयोग करना

सुझावः

    1. नीति आयोग ऐसे प्रोत्साहनों की रूपरेखा तैयार करने में उत्प्रेरक की भूमिका अदा कर सकता है जिन्हें केन्द्र सरकार तंत्रों जैसे समकक्ष योगदान, स्वास्थ्य क्षेत्रक सुधारों को पूरा करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करना और नीतियां जिनका उद्देश्य ज्यादा पारदर्शिता लाना, गवर्नेंस में सुधार करना और स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करना हो, के द्वारा स्वास्थ्य के लिए अधिक संसाधन आबंटित करने के लिए राज्यों को प्रदान कर सकती है (Bill and Melinda Gates Foundation)।
    2. केन्द्र, स्वास्थ्य संबधी लोकहित जिनका अंतर्राज्यीय महत्व है जैसे बीमारी की निगरानी, रोगवाहकों पर नियंत्रण, रोग प्रतिरक्षण पर केन्द्रीय संसाधन खर्च करने पर जोर देने के द्वारा और आवश्यक वस्तुओं जैसे वैक्सीन, औषधि नैदानिक जांच इत्यादि की थोक में खरीद/मूल्य संबंधी मोलभाव का लाभ उठाते हुए, का वित्तपोषण करने के द्वारा भी अधिकतम सीमा तक लाभ उठाने का प्रयास कर सकता है (Bill and Melinda Gates Foundation)।
    3. सरकार ने सहकारी संघवाद के लिए जरूरी संस्थागत परिवर्तन लाने, कई केन्द्र प्रायोजित स्कीमों की पुनः रूपरेखा तैयार करने का कार्य शुरू किया है। इससे केन्द्रीय निधियों को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करने का अवसर मिलेगा जिससे उच्च प्राथमिकता वाले जिलों की विशेष जरूरतें पूरी हो सकती हैं (Shailesh Kumar Sharma)।

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कुल टिप्पणियां - 99

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  • Ravi Ramesh - 9 years ago

    The health care is itself is a pure social work. The study of MBBS may be provided with no cost or lessor cost to enable common people to choose for medical seat. Large number of government medical colleges should launch and focus on villages. They should tie up for practical training at PHCs. Provision for cost of treatment either free or with lesser charges for those who are economically backward which may be identified with ration card and/or with the concent of head of gram panchayat.

  • Gaurav Gupta_19 - 9 years ago

    Also in Sweden as I saw, all health records are digitally stored on your health card. No need of any paper. Not even for prescription. Doctors prescribe medicine digitally on centralized healthcare system based on social security number i.e SSN. Then you go to pharmacy and based on SSN they will give your medicine.

    PRIMARY, SPECIALIST and PHARMACY all digitally connected to centralized healthcare system, Insurance and social security system. This is also we need in India.

  • Gaurav Gupta_19 - 9 years ago

    As commented earlier, Swedish model of healthcare is the best and if it can adopted in India will help masses.

    In Sweden every citizen is assigned his primary doctor. For any health issues first level of contact is his primary doctor. Primary healthcare is free for all and funded by government. Second level is on recommendation from primary to Big specialised hospitals. Second level expenses are covered through Insurance. In hospitals you pay upfront cost once and no further payments.

  • thakur hassomal gopalani - 9 years ago

    I am of opinion that during study of medicine (MBBS ETC) students may be taken to villages to see health condition of people. invite their suggestion . Proper infrastructure may be developed for medical care and stay of staff at villages . Security may also be provided to staff .
    It may be possible that some of students may like to serve in village after seining reality at villages
    .
    Lastly create work- culture in govt dept and home as children follow their elders/seniors.

  • Dr Shilpa Jain - 9 years ago

    Government should stop opening of new private medical/dental/physiotherapy colleges and should limit the number of seats. As these days seats are being sold at higher prices to aspiring students and only students from a rich background are able to buy these seats which inturn leads to a doctor with a MEDICAL DEGREE but NO KNOWLEDGE. Government should increase number of seats in Government colleges to encourage students to become future doctors.

  • dheeraj n - 9 years ago

    Solution for dupliate medicine-Government to create portal containing of all drugs,medicine list.Soo that people can check whether it is genuine medicine or not.Usually duplicate medicines will be with slight name change which people cant know.Soo by puting the medicine name.we will be able to check its correctness or valid approved from department of government can be known.

  • Amit Garg - 9 years ago

    I was reading about the health system in Sweden and they have a wonderful system. The government does not open hospitals. Instead government asks the citizens to have health insurance. The health insurance is must for every citizen. Government pays insurance premium for the poor. The health insurance companies keep a check on the hospitals for pricing. And the hospitals not denying service to any citizen is taken care by the law. If we have this system we can bring down the medical expenses.

  • Amit Garg - 9 years ago

    As suggested by someone, its true that the insurance policies available do not cover many things. Infact the whatever diseases they cover are also not 100% insured. They have found out ways to push the burden to the consumer. One example for this is, they do not cover the Operation theater rental charges which the hospitals shamelessly charge as a separate head from the patients. We should have a policy which covers 100% of the bill. This will be beneficial for the consumer.

  • santanu dutt - 9 years ago

    in order to save our society, build excessive amount of orphan home and old age home and pass this responsibility to our renowned gurus by helping them with some fund.this will solve the age gap related problems.under the proper guidance from the gurus, they will find the suitable path of their life.this practice was prevalent in our vedic society. and our india will be great nation within a short period of time. thanks Modiji.

  • Madhup Sharma_1 - 9 years ago

    As a solution to scarcity of doctors can’t we have a forum who prescribes and share experience based on which patient himself can do treatment or NGOs run clinics in rural areas or for that matter in urban also (poor people reside more in urban) and discuss the cases and so on. In any case doctor is not responsible for any mis-happening.Why to wait for treatment to happen by doctor. Private hospitals should not be there in countries like ours they are the ones who have made this job lucrative .