बेबी फूड को लेकर CSIR (सीएसआईआर ) को मिली अहम सफलता
इस दुनिया में जब एक नवजात कदम रखता है तो वह रोता है। अपने बच्चे की जरूरत को पूरा करने में माता की निर्णायक भूमिका होती है। और ये चीज मां का स्तन दूध होता है – ये शिशुओं के लिए एक अमृत है – यह सबसे अच्छा और नवजात का पहला भोजन होता है क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से सही अनुपात में स्वस्थ शिशु पोषण के सभी घटकों को शामिल करता है। यह आसानी से पचने योग्य है और नवजात के विकास और प्रतिरक्षा को बढ़ावा देता है। फिर भी, कुछ ऐसी महिलाएं होती हैं , जो विभिन्न शारीरिक कारणों से स्तनपान करने में असमर्थ हैं। ऐसे शिशुओं को विशेष रूप से तैयार किए गए शिशु आहार पर निर्भर होना पड़ता है , और वह भी बेहतर क्वालिटी या कहें मार्के की होती है।
इसके लिए आप सीएसआईआर- केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान सीआईएसआईआर- सीएफटीआरआई, मैसूर, और भारत के वैज्ञानिक धन्यवाद के पात्र हैं। इन वैज्ञानिकों ने एक स्वस्थ शिशु आहार तैयार किया जिससे आयातित विदेशी शिशु खाद्य ब्रांडों पर निर्भरता कम हो गई। यह विकास पांच दशक पहले हुआ और इसने राष्ट्रों के पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में नया आयाम लाया। 1 960 से पहले, शिशुओं के खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का मतलब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी बोझ था। आज ये आम बात है कि वैज्ञानिक इनोवेशन (नवाचार) की वजह से माता-पिता, व्यावसायिक रूप से बेचा जाने वाले शिशुओं के खाद्य पदार्थों पर भरोसा करने लगे हैं । ये क्वालिटी वाले खाद्य पदार्थ अब भारत में ही बेहतर तरीके से बनाए जाने लगे हैं।
अमूल(AMUL) सीएसआईआर-सीएफटीआरआई टेक्नोलॉजी पर आधारित एक बेबी फूड है जो दशकों से भारत में एक घरेलू नाम रहा है। शिशुओं के लिए इस स्वादिष्ट और पोषक तत्व को सीएफटीआरआई ने बनाया था। सीएसआईआर-सीएफटीआरआई के शिशु आहार तैयार करने के पहले बच्चों को भैंस का दूध दिया जाता था , हालांकि एक बच्चे के लिए या कहें नवजातों के लिए ये दूध आसानी से पचता नहीं था , दूसरे शब्दों में कहें तो इसे पाचन के लिए अनुपयुक्त माना जाता था।
हालांकि, सीएसआईआर-सीएफटीआरआई प्रौद्योगिकी ने साबित कर दिया कि भैंस के दूध को पौष्टिक शिशु आहार में बदल दिया जा सकता है। इस उपलब्धि की बदौलत ही भारतीय डेयरी उद्योग को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिला साथ ही शिशु खाद्य पदार्थों के निर्माण के लिए स्वदेशी तकनीक रखने की देश की आवश्यकता को पूरा करते हुए ये आगे बढ़ा । उत्पाद के लिए डीएल-मेथियोनीन के अलावा शिशु के इष्टतम विकास के लिए अपने पोषण प्रोफाइल को बढ़ाने में मदद मिली। सीएएसआईआर-सीएफटीआरआ की तरफ से लैक्टोज-फ्री, सोया-आधारित, हाइपोलेर्लैजेनिक शिशु आहार बनाने को लेकर भी विकास किया गया।
सीएसआईआर-सीएफटीआरआई ने प्रचलित खमीर कोशिकाओं या विशिष्ट एंजाइमों का उपयोग करके बच्चों के लिए कम लैक्टोज दूध के उत्पादन के लिए तकनीक विकसित की है, जो हाइड्रोलाज लैक्टोस को ग्लूकोस और गैलेक्टोस का उपयोग करके बनाया गया हैं । लैक्ट्युलोज’ युक्त शिशु फार्मूला भी विकसित किया गया है।जो विशेष रूप से कृत्रिम शिशु आहार के तौर पर बच्चों के लिए बनाया गया है , क्योंकि उन्हें लाभप्रद माइक्रोफ्लोरो की पर्याप्त वृद्धि नहीं होती है, जो मां के दूध में पाए जाते हैं।
स्वस्थ भोजन मसलन जो आसानी से पच सके , इसको मल्टैड अनाज / बाजरा और अंकुरित हरी चने से बनाया गया था। नया और प्रभावी दूध देने वाले खाद्य पदार्थों को तिलहनों और अलग प्रोटीनों से बनाये गये थे। ऐसा ही एक उत्पाद पूरे सोया आटे से और सूखे सोया प्रोटीन के साथ बनाया गया था। यह उत्पाद मैथियोनीन, विटामिन और खनिजों के साथ बनाया गया था, जो 26 फीसद प्रोटीन और 18% वसा से युक्त था ।
बच्चों के लिए भारत में 1966 में सीएसआईआर-सीएफटीआरआई द्वारा अमूल दूध विकसित और निर्मित किया गया था। उस समय यह दूध पाउडर भारत में बहुत लोकप्रिय हो गया। सीएसआईआर-सीएफटीआरआई के 1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने पूरे सोया आटे बनाने के लिए एक और विधि विकसित की और कम लागत वाले प्रोटीन का खाना बनाया जो कि गेहूं और सोया के आटे का मिश्रण था । मिश्रण का फीसद था 70-30(70:30) रहा करता था।
बाल-अहार, एक सोया आहार का अनुपूरक था जिसमें सोया आटा, कपास वाले या मूंगफली का आटा और सूखी दूध को मिश्रित रूप से तौयार किया गया था । सोया आधारित आयातित भोजन को बदलने के लिए बनाया गया था। बाल-अहार को एक यूनेस्को परियोजना के हिस्से के रूप में विकसित किया गया था
सीएसआईआर-सीएफटीआरआई द्वारा विकसित पोषक तत्वों की खुराक के रूप में कई ऊर्जा पदार्थ, विभिन्न राज्यों के विभिन्न पोषण हस्तक्षेप कार्यक्रमों में विभिन्न सामाजिक कल्याणकारी परियोजनाओं में और आपदा राहत गतिविधियों के दौरान जरूरतमंदों को वितरित किए गए हैं।
चाहे वह नवजात शिशुओं के लिए हो या विशेष पौष्टिक जरूरतों वाले भोजन के लिए । शिशुओं को पूरक भोजन की आवश्यकता होती है, सीएसआईआर-सीएफटीआरआई प्रौद्योगिकियों ने कई तरह से भारतीय परिवार को छुआ है और ऐसा करना जारी रखेगा क्योंकि बच्चों के खाद्य इंडस्ट्री के साथ साथ सेवा भी करने की संभावना है ।