मेरा निजता का अधिकार किसी अन्य के जीवन के अधिकार पर हावी नहीं हो सकता

11 Jul 2020

“मरने के लिए मेरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है “

महात्मा गांधी द्वारा लिखी गईं ये पंक्तियाँ निश्चित ही अहिंसा के शुद्धतम रूप की भाव्यभिव्यक्ति हैं, आज जब पूरी दुनिया कोविड19 से संघर्ष करते हुए अपने सर्वाधिक बुरे दौर से गुजर रही है तब “जीवन के सिद्धांतों” के पुनर्स्थापन हेतु हम में से प्रत्येक को अपने अपने जीवन मूल्यों के आत्मवलोकन का समय है।

प्रकाश की गति से भागती दुनिया थम गई है,संगरोध व लॉकडाउन हमारे आत्मानुभूति के अवसर बन गए हैं, अपरिग्रह का सूक्ष्मतम अवलोकन हम सभी दैनंदिन की आवश्यकताओं की कटौती के रूप मेंकम या ज्यादा कर रहे हैं तथा मनुष्योचित परोपकार के दर्शन भी सारे देश ने अनेक रूपों में किए हैं।

इस सब के बीच मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी “कफ़न” के घीसू,माधव जैसे पात्रों के यथार्थ चित्रण भी देखे गए,बच्चे के मरने के इंतजार में बैठे गिद्ध को फोटो में कैद कर मशहूर होने वाले पत्रकार केविन कार्टर के स्तर तक जाते अवसरवादी भी देखे गए।

लोकतान्त्रिक शासन तंत्र के विरोधी विचारधारा में विश्वास करने वाले व्यक्ति और समूह लॉक डाउन के विरोध में संगठित रूप से अलग-अलग कथात्मक रच कर  कोविड-19 के विरुद्ध भारत के लोगों के रक्षात्मक प्रयासों को कमजोर करने में लगे हुए हैं। एक ओर जब भारत के लोगों और भारत सरकार की एकात्म रणनीति की पूरी दुनिया न केवल तारीफ कर रही है बल्कि अनुसरण भी कर रही है तब ये लोग “आरोग्य सेतु” जैसे महत्वपूर्ण रक्षा अस्त्र के विरोध में बेतुके ढंग से “निजता के अधिकार” के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं।

आरोग्य सेतु एक तरह का अलार्म डिवाइस है, जो मोबाईल फोन में एक एप के रूप मे डाउन लोड किये जाने के पश्चात मोबाईल फोन के ‘जी पी एस’ से धारक की सटीक स्थिति का पता करता है, ठीक उसी प्रकार जैसे ओला,ऊबेर जैसी टैक्सी सेवा या डोमिनोज़ और स्वीग्गी जैसी भोजन प्रदान करने वाले सेवा प्रदाता करते हैं।

इस एप्प में धारक स्वयं की बुखार,खांसी,कफ, सांस लेने मे परेशानी के साथ पुरानी बीमारी (यदि कोई हो तो )मधुमेह,दिल की बीमारी या फेफड़ों की कोई बीमारी,रक्तचाप इत्यादि की जानकारी एवं यात्रा अथवा संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने की जानकारी प्रदान कर खुद का एक स्वपरिक्षण कर खतरे की स्थिति को भांप सकते हैं।  दर्ज की गई जानकारी के आधार व्यक्ति इलाज अथवा सलाह ले सकता है।

इसी सीमित जानकारी के आधार पर यह एप्प ब्लूटूथ के माध्यम से आस पास के क्षेत्र के सभी लोगों को संक्रमित व्यक्ति के संपर्क मे आने से आगाह कर बचा सकता है।

सभी उपयोगकर्ता संक्रमण फैलने के पहले बचाव हेतु संयम व सुरक्षा अपनाकर न केवल खुद बचे रह सकते हैं, बल्कि अद्धतन जानकारी के आधार पर समाज में बीमारी फैलाने से भी बचेंगे। इतना ही नहीं कोरोना के संबंध में अधिकृत सूचना,समाचार प्राप्त करना हेल्पलाइन से संपर्क करना सभी सुविधा इस आरोग्यसेतु में हैं।

इस कोरोना विषाणु की संक्रामक प्रवृत्ति के कारण बीमारी से ज्यादा इसका फैलाव खतरनाक है,वैक्सीन के अभाव में मौजूदा दौर में वैश्विक स्तर पर भी संक्रमण से बचाव हेतु इसके संपर्क की श्रंखला को तोड़ना ही सटीक उपाय माना गया है।

संक्रमित होने अथवा संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर खुद को सघरोधित करना ही अन्य व्यक्तियों को बचाने के लिए एक मात्र उपाय है,इसके लिए दुनिया के कई देशों ने इस तरह के डिजिटल उपायों की मदद ली है और दक्षिण कोरिया का उदाहरण मील का पत्थर है।

ऐसी स्थिति में यदि लोग व्यक्तिगत निजता के अधिकार की दुहाई दे कर महामारी के दौर में बीमारी की जानकारी या ऐसी जानकारी छुपाएंगे तो कोविड19 के श्रंखलाक्रम को तोड़ना असंभव है। यह समझना बेहद आवश्यक है कि इस श्रंखला को तोड़ने में सभी को ईमानदार प्रयास करने होंगे क्योंकि ये बीमारी आपकी निजी बीमारी नहीं है ये सार्वजनिक महामारी है जो दूसरे व्यक्ति के लिए जानलेवा है, जिसके जीवन पर आपका कोई अधिकार नहीं है तो फिर आपका व्यक्तिगत निजता का अधिकार उस दूसरे व्यक्ति जिसका जीवन आप खुद कोविड-19 श्रंखला का भाग बनकर खतरे में डाल रहे हैं, के जीवन जीने के अधिकार पर हावी कैसे हो सकता है?

जीने का अधिकार, निजता के अधिकार और स्वतंत्रता के अधिकार को अलग-अलग करके नहीं बल्कि समग्र रूप में देखा जाना चाहिए,निजता मनुष्य के गरिमापूर्ण अस्तित्व का अभिन्न अंग हैं और यह सही है कि संविधान में इसका जिक्र नहीं है, लेकिन निजता का अधिकार वह अधिकार है, जिसे संविधान में गढ़ा नहीं गया बल्कि मान्यता दी है।

भारत के संविधान और इसके अधीन न्याय प्रणाली ने व्यक्तिगत निजता को मौलिक अधिकार माना है एवं इसके लिए विधिवत व्यवस्था दी है।

निजता का अधिकार जीवन जीने के अधिकार के भाग के रूप में ही मूल अधिकार है गरिमामय जीवन जीने के अधिकार में ही व्यक्तिगत निजता का अधिकार सम्मिलित है।  जिसकी विस्तृत व्याख्या भारतीय न्याय व्यवस्था द्वारा की गई है। परंतु महात्मा गांधी के देश में जिनके बारे में विश्व के विभिन्न मनीषियों, समाज सुधारकों ने एक स्वर में स्वीकार किया कि गाँधीजी के बिना मानवाधिकार की संकल्पना अधूरी रह जाती है। मानवाधिकार की पृष्ठभूमि गांधीजी की दृष्टि और दर्शन का ही परिणाम है।

गांधी जी को जब ‘बा’ ने बताया कि देश में गरीब स्त्रियों के पास दो साड़ी भी उपलब्ध नहीं हैं तब उन्होंने स्वयं वस्त्रों का त्याग कर दिया और सारा जीवन केवल आधी धोती मे गुजार दिया ऐसे गांधी जी के देश मे यदि मेरी व्यक्तिगत निजता किसी के प्राणों को संकट में डालती है तो वह आपराधिक विलासिता है।

हम जब संवैधानिक मूल अधिकारों की बात करते हैं तो ध्यान रहे कि यह सभी के लिएसमान हैं अभिजात्य वर्ग के बुद्धिजीवी या पत्रकार,वकील,जागरूक ऐक्टिविस्ट,कवि या राजनीतिक अथवा नौकरशाह होने से ऐसे व्यक्तियों कामूल अधिकार किसी अन्य व्यक्ति के मूल अधिकार से गुरुतम नहीं हो जाता।

जीवन का अधिकार सभी के लिए समान है और हाशिये पर खड़े वंचित से वंचित तबके के गरीब,मजदूर,आदिवासी दलित या पिछड़े वर्ग के महिला,पुरुष एवं ट्रैन्ज़्जेन्डर को ये जानने का पूरा हक है की वो जिसके संपर्क में आ रहा है कहीं वो व्यक्ति उसे संक्रमण की ज़द में तो नहीं ला रहा।

गंभीर संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए चिन्हाकन किया जाना एक सामान्य प्रक्रिया रही है दुनिया भर में देश काल परिस्थिति के अनुरूप इस तरह का प्रमाणीकरण किया जाता रहा है, भारत में भी एक पूरी की पूरी पीढ़ी अपनी बांह में चेचक के टीके का निशान दिखा कर खुद सुरक्षित प्रमाणित करती आई है।

खुद के प्राण देने के लिए अतिवादी लोगनिजता के अधिकार की स्वायत्ता ले भी सकते हैं, परंतु  किसी को भी दूसरे की जान पर संकट पैदा करने की स्वायत्ता नहीं दी जा सकती। कम से कम मैं तो स्वयं को यह अनुमति नहीं दे सकता कि मेरे कारण वो मेहनतकश कर्तव्यनिष्ट लोग जो अपने अपने परिवार के अकेले कमाने वाले जिम्मेदार लोग हैं, मेरे दैनंदिन कार्यों में मेरे संपर्क मे आ सकते हैं जैसे सिक्युरिटी गार्ड,ड्राइवर,माली,लिफ्टमेन,सफाईकर्मी इनके जीवन का अधिकार मेरे निजता के अधिकार के कहीं ऊपर है। मैं जिस की रक्षा नहीं कर पा रहा हूँ उसका जीवन खतरे में डालना मेरी दृष्टि मे मानवाधिकार घोर हनन है।

मनुष्य के मूल अधिकारों की फेहरिस्त में जीवन जीने का अधिकार सर्वोच्च है,जो वंचित हैं उनका जीवन का अधिकार सुनिश्चित करना मानव होने के नाते मेरा सर्वोच्च कर्तव्य है। भारत तथा  दुनिया भर में जो लोग “आरोग्यसेतु” के तरह के उपायों के विरोध मे निजता के अधिकार के हनन की दुहाई दे रहे हैं असल में वे बिना सोचे समझे विनाशकारी अजेंडा के कथात्मक से प्रभावित संकुचित विचार के लोग हैं और यहाँ लिखने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ये लोग उसी नीरो की श्रेणी के लोग हैं जिसने जलते रोम को बचाने की जगह अपनी व्यक्तिगत निजता की विलासिता को तरजीह दी थी ।

 

(लेखक – श्री प्रियंक कानूनगो, अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, भारत सरकार )

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