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इंसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। एक सर्वे के अनुसार एक तिहाई लकड़ी का इस्तेमाल अंतिम संस्कार के लिए किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक देश में साल भर में शव जलाने में तकरीबन 5 करोड़ वृक्ष काटे जाते हैं।
अंतिम संस्कार के दौरान नदियों और पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदूषण की मात्रा को कम करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने गाय के गोबर से ईको-फ्रेंडली ईंधन बनाने का एक विकल्प खोजा है। यह ईंधन बेहद सस्ता है और इससे वायु प्रदूषण भी नहीं होगा। आमतौर पर एक शव को जलाने के लिए 4-5 क्विंटल लकड़ी की आवश्यकता होती है लेकिन गाय के गोबर से तैयार दो क्विंटल फ्यूल स्टिक्स एक शव को जलाने के लिए काफी है।
जलाऊ लकड़ी, ईंधन के लिए सर्वाधिक सुलभ साधन था लेकिन अब यह नहीं है। पर्यावरण को संतुलित करने की दृष्टि से ईधन के स्रोत के रूप में वृक्षों पर यह निर्भरता घटाने में गौ काष्ठ हमें मदद कर सकता है।
गाय का गोबर बना ईंधन का नया विकल्प
घरेलू और औद्योगिक दोनों प्रकार की जरूरतों के लिए प्राकृतिक गैस, पेट्रोल तथा कोयले पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों की तलाश में सौर ऊर्जा के साथ-साथ गाय के गोबर को ईंधन के एक नए विकल्प के रूप में स्थापित किया जा सकता है। 500 किलो लकड़ी के लिये दो बड़े पेड़ काटने पड़ते हैं जिसका खर्च करीब 4000 रुपये आता है। वहीं 500 किलो लकड़ी के स्थान पर गौ काष्ठ का प्रयोग किया जाये तो 300 किलो गौ काष्ठ में ही काम हो जाता है।
जानें मध्यप्रदेश का गौवंश प्रतिशत
19 वीं पशु संगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में कुुल गौवंशीय पशु 196.00 लाख हैं। जिसमें से देशी नस्ल के गौवंश 18761389 हैं और संकर नस्ल के गौवंश 840977 हैं। भारत की तुलना में मध्यप्रदेश. का देशी नस्ल गौवंश का प्रतिशत 12.41 है। गौवंश की इस प्रचूर उपलब्धता को देखते हुए गोबर से गौ काष्ठ का उत्पादन करना एक फायदेमंद बिजनेस के रूप में उभर सकता है।
गौ काष्ठ किसे कहते हैं ?
पारंपरिक तरीके से गाय के गोबर से कण्डे बनाए जाते रहे हैं और इसका उपयोग ईंधन में रूप में किया जाता रहा है। कण्डों के आकार में परिवर्तन कर इसे लकड़ी के आकार में बना कर इसका वेल्यू एडिशन किया जाता है। इसी सूखे गोबर को, जो लकड़ी के आकार में होता है, गौ काष्ठ कहा जाता है।
गौ काष्ठ को जलाने के लिए कैसे तैयार किया जाता है ?
गौ काष्ठ हस्थ चलित और विद्युत मशीन दोनों तरीके से तैयार किया जा सकता है। मशीन में गोबर को डाला जाता है जिसे 4 से 5 फिट लंबे लकड़ी के आकार में ढ़ाला जाता है। इसको 5 से 6 दिन तक सुखाया जाता है और गौ काष्ठ जलाने के लिये तैयार हो जाता है, करीब 01 क्विंटल गोबर में गौशाला में उपलब्ध अन्य बचे अपशिष्ट को मिलाकर 01 क्विंटल लकड़ी बनाई जा सकती है। यदि गोबर में लैकमड मिलाया जाया तो यह ज्यादा समय तक जलती है। एक मशीन से दिन भर में 10 क्विंटल गोबर से लकड़ियां बनाई जा सकती हैं। गौ काष्ठ की लागत करीब 7/- रुपये प्रति किलो पड़ती है।
गौ काष्ठ का उपयोग किन स्थानों पर किया जा सकता है ?
घरेलू उपयोग में लकड़ी की जगह पर गौ काष्ठ का उपयोग आसानी से किया जा सकता है। श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार में उपयोग के साथ ही धार्मिक आयोजनों जैसे- होलिका दहन, यज्ञ, हवन इत्यादि में गाय के गोबर एवं कण्डों का बड़ा महत्व है। इन सभी कार्यों में गौ काष्ठ का उपयोग किया जा सकता है।
स्थानीय बाजार में भी गौ काष्ठ को बेचा जा सकता है
एक ओर जहां गौ काष्ठ की, ईंधन के बेहतर विकल्प के रूप में उपयोग की बहुत संभावनाऐं विद्यमान हैं, वहीं गौ काष्ठ को स्थानीय बाजार में बेचने से कृषक और गौशालाओं को आर्थिक लाभ भी प्राप्त हो रहा है।
जागरुकता बढ़ाएं और रोजगार पाएं
मध्यप्रदेश गौपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड के द्वारा किए गए प्रयासों से गौशालाओं में गौकाष्ठ निर्माण के प्रति जागरूकता बढ़ी है। मध्यप्रदेश गौपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड द्वारा प्रदेश की गौशालाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में, गौकाष्ठ बनाने हेतु प्रोत्साहित किया गया है, इससे गौशालाऐं गौ काष्ठ का निर्माण, विपणन कर आय अर्जित कर रही है। गाय के गोबर से ईको-फ्रेंडली ईंधन बनाने पर पर्यावरण और पेड़-पौधे सुरक्षित रहेंगे, धुएं से निजात मिलेगा और वायु प्रदूषण पर नियंत्रण होगा। इसके अलावा गाय के गोबर से ईको-फ्रेंडली ईंधन बनाने हेतु लोगों को रोजगार की प्राप्ति भी होगी।
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