सामाजिक बदलाव का संवाहक बन रहा ‘बहिनी दरबार’

26 Jul 2021

कुछ आदिवासी ग्रामीण महिलाओं ने 13साल पहले अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए जो संकल्प लिया था , वह आज बदलाव की मुहिम बन चुका है।

रीवा जिले की जावा तहसील के डभौरा प्रखंड के गांवों की महिलाओें के एक समूह द्वारा अपनी आवाज उठाने के लिए बघेली बोली में शुरु किया गया हस्तलिखित समाचारप़त्र ‘ बहिनी दरबार ‘ समाज में बदलाव लाने में अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है। इसके जरिए आदिवासी महिलाएं न केवल जागरुकता फैला रही हैं वरन जरुरतमंदों की मदद भी कर रही है।

लॉकडाउन में महिलाओं तक पहुंचाए सेनेटरी पैड

पिछले साल जब कोरोना महामारी ने देश में दस्तक दी तो इन महिलाओं ने राहत कार्य में भी अपनी भागीदारी बखूबी निभाई। समूह की दस सदस्यों ने लॉकडाउन के दौरान महिलाओं तक सेनेटरी पैड पहुंचाने का जिम्मा उठाया।
2008 में शुरू होने के बाद से ही बहिनी दरबार ने आदिवासी समुदाय के बीच अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। महीने में एक बार निकलने वाले इस हस्तलिखित समाचार पत्र में दी गई जानकारी लोगों को न केवल उनके अधिकारों के बारे में सूचित करती हैं बल्कि उन्हें अपने आसपास हो रहे परिवर्तनों के बारे में भी शिक्षित करती हैं।

सामाजिक भेदभाव ने महिलाओं को सोचने पर किया मजबूर

‘आंखन देखी, कानन सुनी, हाथन लिखी ,सामाजिक बदलाव की खातिर‘ टैगलाइन के साथ निकलने वाले इस अनूठे समाचार पत्र को शुरु करने का आइडिया कुछ आदिवासियों महिलाओं को वर्ष 2008 में हुई एक घटना के बाद आया था। गांव के हैंडपंप पर पानी भरने गई एक दलित महिला को जब सामाजिक भेदभाव झेलना पड़ा तो गांव में हलचल मच गई और इस घटना ने आदिवासी महिलाओं के एक समूह को, जिन्होंने तब तक अपने घर से कभी बाहर कदम तक नहीं रखा था , एक साथ आने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया। गांव में रहने वाली उषा और उनकी छह साथियों ने तय किया  कि वे अपने समुदाय को जागरूक करने के लिए एक छोटा अखबार शुरू करें जो कि सीमित संसाधनों में भी निकाला जा सके।  इस प्रकार  ‘बहिनी दरबार ‘ अस्तित्व में आया। देवनागरी लिपि में लिखे जाने वाले इस अखबार में बघेली में विचारों को अभिव्यक्त किया जाता है ताकि यह यहां के लोगो को अपना सा लगे। बघेली में बहिनी दरबार का आशय है- बहनों का दरबार,। इस अखबार की शुरुआत सिर्फ 15 सदस्यों के साथ हुई थी, लेकिन अब डभोरा ब्लॉक के कई गांवों में सैकड़ों लोग इससे जुड़ चुके हैं।

समूहों में पढ़ा  भी जाता है यह अखबार

समूह के सदस्य अखबार की सामग्री के बारे में चर्चा करने के लिए हर महीने की 20 तारीख को बैठक करते हैं और 30 तारीख को इसे प्रकाशित किया जाता है। उषा द्वारा संपादित और जन्मावती द्वारा हस्तलिखित इस प़त्र को फोटोकॉपी करके वितरित किया जाता है। उन सदस्यों के लिए जो निरक्षर हैं और पेपर नहीं पढ़ सकते हैं, उन्हें समूहों में पढ़ा जाता है ताकि सभी को सामग्री और जानकारी के बारे में पता चल सके।

इस अखबार के जरिए महिलाएं अपने साथ हो रहे अन्याय, घरेलू हिंसा के साथ-साथ आसपास हो रही गतिविधियों से अवगत कराती हैं। इसके अलावा इसमें समय-समय पर महिलाओं के अधिकारों से जुडे़ मुददों , बाल विवाह, दहेज जैसी कुरीतियों आदि की जानकारी भी दी जाती है।

इस अखबार का उद्देश्य आदिवासी और अनुसूचित जाति की महिलाओं की मदद करना है जो आमतौर पर अपने अधिकारों से वंचित रहती हैं। इसके अलावा इस समूह से जुड़ी महिलाएं  आसपास के गांवों की  समस्याओं को हल करने में भी सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। महिलाओं के नाम पर राशन कार्ड होने समेत जमीन और अन्य वित्तीय अधिकारों में उनकी सहभागिता बढ़ाने की दिशा में भी यह समूह कार्य कर रहा है।

सोशल मीडिया पर भी है ‘बहिनी दरबार’

समूह ने ‘बहिनी दरबार ‘ के जरिए सोशल मीडिया पर भी अपनी  प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। इसमें जहां एक ओर ‘सबसे बड़ा आम अनुसंधान केंद्र रीवा मा‘ हैडिंग के जरिए रीवा जिले के कुठलिया गांव में प्रदेश के सबसे बड़े आम अनुसंधान केंद्र के बारे में जानकारी दी गई है वहीं एक अन्य पोस्ट विश्व मधुमक्खी दिवस के महत्व के बारे में अवगत कराती है। इसके अलावा समय-समय पर विविध विषयों की जानकारी भी ब्लॉग पर साझा की जाती है।  ट्विटर  और फेसबुक पर भी इसकी गतिविधियां देखी जा सकती है।

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