Know the stories of some Inspirational Women of MP

09 Mar 2022

नारी शक्ति है, सम्मान है
नारी गौरव है, अभिमान है

शिक्षा की नई राहें और बदलते दृष्टिकोण की वजह से महिलाएं आज एक शक्ति के रुप में उभर रही है। आज के बदलते परिवेश में हर वर्ग की महिलाएं जिस तरह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति की ओर अग्रसर हो रही है, वह समाज के लिए एक गर्व की बात है।

आइए जानते हैं मध्यप्रदेश की कुछ ऐसी ही सशक्त महिलाओं के बारे में जिन्होंने अपनी प्रतिभा और दृढ़ निश्चय से न केवल देश-प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है बल्कि हजारों अन्य महिलाओं को भी अपने आपको सशक्त बनाने की प्रेरणा दी है।

1. आधुनिक दौर में भी प्राकृतिक ऊर्जा को सहेजते हुए आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत कर रही हैं ‘जनक पलटा’

• पद्मश्री से सम्मानित ‘जनक पलटा (74 वर्ष ) मगिलिगन’ की पहचान कर्म ही है।
• कुछ दशक पहले वे और उनके ब्रिटिश मूल के पति जिमी मगिलिगन इंदौर आए थे और यहीं पर बरली महिला ग्रामीण विकास संस्थान का संचालन कर समाजसेवा करने लगे।
• इंदौर के सनावड़िया गांव में इनका घर ‘सौर ऊर्जा और ‘ पवन ऊर्जा ’ के संयोजन का अनूठा केंद्र है।
• उन्होंने आदिवासी अंचल की करीब 6 हजार बेटियों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है।
• वे पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं उनकी पूरी जीवन शैली प्रकृति से जुड़ी हैं।
जनक पलटा को मिले प्रमुख सम्मान –
• वर्ष 2001 में उत्कृष्ट महिला सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार
• वर्ष 2006 में जनजातीय महिला सेवा पुरस्कार
• समाज सेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए पद्मश्री पुरस्कार
• मध्यप्रदेश गौरव सम्मान

26 वर्षों तक बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान के निदेशक के रूप में सेवाएं देने वाली जनक विश्व शांति और एकता के लिए भी प्रयासरत हैं।

2. देश की सबसे यंग महिला अंपायर ‘शुभदा भोंसले’

मध्यप्रदेश की शुभदा भोंसले गायकवाड़ ने खेल जगत में नया मुकाम हासिल किया है।
• झाबुआ जिले के थांदला कॉलेज में खेल अधिकारी शुभदा ने 20 जनवरी 2022 को ओमान में आयोजित लीजेंड क्रिकेट लीग में मैच की अंपायरिंग कर यह उपलब्धि हासिल की।
• इस क्रिकेट टूर्नामेंट में पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और हांगकांग की सभी महिला अंपायर में शुभदा ने सबसे कम उम्र की अंपायर के रूप में अपनी खास पहचान बनाई है।

3. नरसिंहपुर जिले की रहने वाली ‘माया विश्वकर्मा’ बनी पैड वूमन

मध्यप्रदेश की रहने वाली ‘माया विश्वकर्मा’ अब देश की पैड वुमन के रूप में जानी जाती हैं। वे सुकर्मा फाउंडेशन की स्थापना कर मासिक धर्म से जुड़े तमाम मिथकों को समाज से मिटाने की कोशिश में जुटी हुई हैं। माया ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को में ब्लड कैंसर पर शोध कार्य किया है। ग्रामीण महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में शिक्षित करने के उद्देश्य से वह कैलिफोर्निया से भारत वापिस आईं। आज वह सबके लिए एक प्रेरणा बन गई हैं।
• माया के घरवाले खेती-मजूदरी करके घर की जरूरतें पूरी करते थे, इसके बावजूद उन्होंने पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया।
• अमेरिका में पढ़ाई करने के बावजूद उन्होंने 26 साल की उम्र तक कभी सैनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं किया था।
• कपड़े की वजह से माया को कई तरह के संक्रमण हो गए। जब उन्हें अपनी बीमारी की असल वजह पता चली तब उन्होंने अपना इलाज करवाया।
• इसके बाद उन्होंने लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षित मासिक धर्म के महत्व के बारे में शिक्षित करने का फैसला किया।
• माया ने मार्च 2016 में NGO सुकर्मा फाउंडेशन की शुरुआत की। इसके साथ ही उन्होंने मेंस्ट्रुअल हाइजीन अभियान शुरू किया और 15 आदिवासी जिलों में जाकर सैकड़ों महिलाओं को जागरूक किया। साथ ही उन्हें सैनेटरी पैड भी प्रदान किये।
• ग्रामीण महिलाओं को कम कीमत पर सैनेटरी पैड मिल सकें इसके लिए उन्होंने क्राउड फंडिंग के जरिए पैसे जुटाए और एक छोटी फैक्ट्री डाली।
• माया को समाजसेवा के लिए शिकागो का ग्लोबल कम्युनिटी ऑस्कर अवार्ड सहित कई सम्मान मिल चुके हैं।
• वह कहती हैं कि मैंने इतने साल तक माहवारी में कपड़े का इस्तेमाल किया और मुझे अच्छे से पता है कि इसका हमारी सेहत पर कितना बुरा असर पड़ता है। इसीलिए मैंने इस मुहिम की शुरुआत की ताकि मैं गाँव की महिलाओं को पीरियड्स के बारे में समझा सकूं, इससे जुड़ी भ्रांतियों को उनके मन से निकाल सकूं और इसे लेकर उनके अंदर जो झिझक है उसे दूर सकूं।

4. दो महिला किसानों ने रोशन किया मध्यप्रदेश का नाम

होशंगाबाद जिले की महिला किसान ‘कंचन वर्मा’ और ‘शिवलता मेहता’ को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
• 2016-17 के लिए गेहूं उत्पादकता श्रेणी में कंचन वर्मा एवं दलहन उत्पादकता श्रेणी में 2017-2018 के लिए शिवलता मेहता को ये पुरस्कार दिया गया।
• दोनों ने गेंहू और चने की खेती में नए तरीके को ईजाद कर रिकॉर्ड तोड़ पैदावार ली।
• ‘कंचन वर्मा’ ने ट्रैक्टर और हल से बुआई नहीं की, बल्कि हाथ से गेंहू बोया और एक हेक्टेयर में 44 क्विंटल तक की पैदावार लेकर नया रिकॉर्ड बनाया। इसी तरह शिवलता ने चने की अच्छी पैदावार के लिए हाथ से बोआई की । साथ ही कीटनाशक के बजाए प्राकृतिक तरीके से ही कीटों पर नियंत्रण किया।
• कृषि कर्मण अवार्ड में सम्मान स्वरूप दो-दो लाख रुपए की नगद राशि एवं प्रशस्ति-पत्र दिया जाता है।

5. उमरिया जिले की ‘जोधइया बाई’ को ट्राइबल आर्ट ने दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया जिले के एक छोटे से गांव लोढ़ा में रहने वाली जोधइया बाई 40 साल से भी ज्यादा समय से ट्राइबल पेंटिंग्स बना रही हैं। 83 साल की उम्र में भी उनके हाथ कैनवास पर खूबसूरत चित्रों को उकेर रहे हैं।
जोधइया बाई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने 8 मार्च 2022 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। जोधइया बाई कभी स्कूल तो नहीं गई, लेकिन उनकी अद्भुत कला के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहचाना जाता है।
• जोधइया बाई के जीवन का लंबा समय मजदूरी में गुजरा, लेकिन पति की मौत के बाद परिवार पालने के लिए उन्होंने किसी दूसरे काम को करने की ठानी और आदिवाली कला को अपने रंगों से सजाने का सफर शुरू हुआ।
• वे अपने आसपास जो भी देखती थी, उसे कैनवास पर उकेर देती थीं । बड़ादेव और बघासुर के चित्रों को जब उन्होंने कैनवास पर आधुनिक रंगों से उकेरना शुरू किया तो बैगा जनजाति की विलुप्त होती यह कला फिर से जीवंत हो उठी।
• उनकी कला ने उन्हें सिर्फ देश तक सीमित नहीं रखा बल्कि दुनिया भर में पहचान दिला दी है। इटली के मिलान से लेकर फ्रांस के पेरिस तक उनकी पेंटिंग्स प्रदर्शित हो चुकी हैं। इसके साथ ही इंग्लैंड, अमेरिका और जापान में भी उनकी पेंटिंग्स लाखों लोग देख चुके हैं।
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मैं हूं आज की नारी , छू सकती हूं आकाश, अवसरों की है मुझे तलाश…

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