सीएसआईआर टेक्नोलॉजी एड्स गन्ना रस संरक्षण-मीठे शीतल पेय को लेकर भारत का जवाब
गन्ना का रस आसानी से भारत के शीतल शीतल पेय के तौर पर बेहतर जवाब हो सकता है …..जो व्यापक रूप से जॉगिंग, एरोबिक्स और व्यायाम के बाद शरीर को ताज़ा करने के लिए माना जाता है। इसके उलट तथ्य यह भी है कि प्रति दिन सोडा पीने से टाइप -2 डायबिटीज के विकास में 22 प्रतिशत तक का खतरा बढ़ सकता है।
भारत दुनिया में गन्ना के प्रमुख उत्पादकों में से एक है।कोई पेय गन्ना के रस के साथ प्रतिस्पर्धा करने के काबिल नहीं है क्योंकि इसमें प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, जस्ता और पोटेशियम और विटामिन ए, बी-कॉम्प्लेक्स और सी के साथ ये परिपूर्णण है ।
गन्ना स्वाद में मीठा और प्राकृतिक शुगर से भरपूर होता है. इसमें कम ग्लाइसीमिक इंडेक्स की वजह से यह मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा होता है…. इस के रस के सेवन से पोषक तत्व मसलन यकृत भी मजबूत हुआ करता है , जो पीलिया यानी जॉंडिस के दौरान उपयोगी होता है।
अन्य मीठे पेय के विपरीत गन्ने का रस कई मायनों में फायदेमंद होता है….मसलन कई मीठे पेय, दांतों के लिए नुकसानदेह होते हैं लेकिन गन्ने के रस में में कैल्शियम और फास्फोरस जैसे खनिज होते हैं, जो आपकी दांतों को मजबूत बनाने मदद करते हैं।
एक खास सीजन में इसकी खपत सड़क के किनारे क्रशर्स तक सीमित होती है , रस में बैक्टीरिया और खमीर की उपस्थिति का कारण त्वरित फायदा होता है, जिससे गन्ना का रस बड़े पैमाने पर भारतीय पेय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होता है।
गन्ने का रस संरक्षण और पैकेजिंग प्रौद्योगिकियों द्वारा एक बढ़िया विकल्प है।
आई आई टी आर के निदेशक डॉ आलोक धवन की मानें तो गर्मी की गन्ने का रस तैयार करने की तारीख से तीन से पांच महीनों तक खपत करने योग्य होगी….गर्मी की तपिश दूर करने के साथ इसकी लोकप्रियता के कारण और भी है। धवन के मुताबिक इसमें ( शुगर केन) मल्टी करोड़ उद्योग बनने की उम्मीद है…जाहिर है इसका सीधा फायदा किसानों को होगा। या कहें तो आप ये कह सकते हैं कि इससे जो सीधा लाभान्वित होंगे वे किसा है…
सीएसआईआर के सात प्रयोगशालाएं एक साथ तीन फोकस क्षेत्रों में काम कर रहे हैं…, जैसे कि दूध और पेय पदार्थ, खाद्य तेलों और खाद्य भंडारण में एक मिशन के साथ काम करने के लिए मिलकर आए हैं। लखनऊ स्थित सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) मिशन की अगुआई कर रही है । हालांकि ये एक आसान काम नहीं होगा क्योंकि विभिन्न विषयों के वैज्ञानिकों को मिलकर खाद्य सुरक्षा की जटिल समस्याओं का हल निकालने के लिए काम करना है ।
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ गिरीश साहनी का कहना है, “ये सच है कि विभिन्न विषयों के वैज्ञानिक, उदाहरण के लिए, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, जीव विज्ञान, के वैज्ञानिकों को अक्सर एक साथ मिलकर और अपने सामूहिक ज्ञान को एक साथ रखने का अवसर नहीं मिलता है।”
भारत एक तरफ परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आगे बढ़ता है दूसरी तरफ अभी भी फूड और सब्जियों की भारी मात्रा में नष्ट होती है …लिहाजा इससे काफी नुकसान होता है… आइअनाइज़ विकिरण की मदद से खाद्य पदार्थों खासकर फूड और सब्जियोंकी सप्लाई चेन के दौरान और दीर्घ काल तक बेहतर किया जा सके …. आइअनाइज़ विकिरण एक बेहतर प्रक्रिया है इनको दीर्घकाल तक बेहतर रखने के लिए
आइअनाइज़ विकिरण ऊर्जा है जिसे लक्षित भोजन में प्रत्यक्ष संपर्क के बिना प्रेषित किया जा सकता है। इस उपचार का उपयोग भोजन को संरक्षित करने, भोजन से होने वाली बीमारी के खतरे को कम करने, आक्रामक कीटों के प्रसार को रोकने, और देरी या अंकुरित या पकने को समाप्त करने के लिए किया जाता है। परमाणु ऊर्जा विभाग ने हाल ही में इसके उत्पादकों और भोजन के उपभोक्ताओं के लाभ के लिए इस और अन्य परमाणु प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए अपने आउटरीच कार्यक्रम का प्रमुख नियुक्त किया है।
भारत में लगातार हो रही खाने की बरबादी को लेकर सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने अपघटन के कारण खाद्य व्यंजनों के घाटे और आपूर्ति श्रृंखला में नुकसान का सामना करने का निर्णय लिया है। प्रत्येक वर्ष 92,000 करोड़ मूल्य का भोजन उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले खराब हो जाते हैं। इतना ही नहीं 13,000 “मेड इन इंडिया” आइटम यूएस एफडीए द्वारा 2011-2015 के दौरान खारिज कर दिए गए थे , जाहिर है इससे भारत के आर्थिक हितों को गंभीर रूप से चोट पहुंचता है ।
फूड सेफ्टी मिशन जिसे फोकस भी कहा जाता है… फोकस नामक खाद्य सुरक्षा मिशन का उद्देश्य, एक मजबूत प्रणाली बनाने और बड़ी, भौगोलिक रूप से फैली हुई आबादी को खिलाने की चुनौतियों का सामना करने के लिए अमल, आईटीसी और एफसीआई जैसे उद्योग दिग्गजों को एक साथ लाने का लक्ष्य है, जिनमें से लाखों गरीब और कुपोषित हैं
ये फ़ीचर सीएसआईआर (विज्ञान प्रसार के लिए यूनिट), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा अपलोड किया गया है)