सीएसआईआर -सीसीएमबी का विकास और बेहतर साम्बा महसूरी चावल का व्यावसायीकरण

20 Jul 2017

अंतर-संस्थागत सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण

साम्बा महसूरी (एसएम) एक लोकप्रिय चावल   है जो कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों के 1-2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं। यह गंभीर बैक्टीरियल ब्लाइट (बीबी) बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील है, जो बैक्टीरियल रोगज़नक एक्जौहोमोनस ऑरजे पीवी (Xanthomonas oryzae pv) के कारण होता है। जिसके परिणाम स्वरूप उपज का  नुकसान 50 प्रतिशत तक हो जाता है। चूंकि उपज हानि को नियंत्रित करने वाले प्रभावी रसायन मौजूदा दौर में उपलब्ध नहीं थे,  लिहाजा चावल के एक मेजबान संयंत्र (प्रतिरोधी) किस्म को विकसित करने का प्रस्ताव था।

ये एक सहयोगी परियोजना थी| इस परियोजना में सीएसआई-सीसीएमबी  के वैज्ञानिक और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ राइस रिसर्च (आईआईआरआऱ) जो पहले डायरेक्टरेट ऑफ राइस रिसर्च के नाम से जाना जाता था, ने संयुक्त रूप से साम्बा महसूरी के बैक्टीरियल फॉल्स्ट प्रतिरोधी  क्षमता को विकसित करने के लिए  काम किया। इस नए वेराइटी में इम्प्रोवाइज्ड सांबा महसुरी नामक नई किस्म पैदा की गई। अब ये सांबा महसूरी की उत्कृष्ट गुणवत्ता और उपज गुणों को बरकरार रखती है। आईएसएम को मार्कर असिस्टेड चयन का उपयोग कर विकसित किया गया था और  जो कि एक ट्रांसजेनिक प्लांट नहीं है। आईएसएम को कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा व्यावसायिक खेती के लिए अधिसूचित किया गया है। आईएसएम को  प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैराइटिज(Protection of Plant Varieties ) और फार्मर्स  राइट्स अथॉरिटी – एफआरए), भारत सरकार के संरक्षण के साथ भी पंजीकृत किया गया है।

एक सहयोगी परियोजना में, सीएसआईआर-सीसीएमबी और आईसीएआर- भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआईआरआर, ( पूर्व का डीआरआर) ने साम्बा महसूरी के बैक्टीरियल प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने के लिए एक साथ काम किया। इम्प्रोवाइज्ड सांबा महसूरी नामक इस नई किस्म के जरिए  उत्कृष्ट गुणवत्ता और उपज गुणों को बरकरार रखा गया है। आईएसएम मार्कर असिस्टेड चयन का उपयोग कर विकसित किया गया था और एक ट्रांसजेनिक प्लांट नहीं है। आईएसएम को कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा व्यावसायिक खेती के लिए अधिसूचित किया गया है। आईएसएम को प्लांट किलेट्स एंड किसान राइट्स अथॉरिटी (पीपीवी और एफआरए), भारत सरकार के संरक्षण के साथ भी पंजीकृत किया गया है।

सीएसआईआर  800  विभिन्न परियोजनाओं  मे से एक है। सीएसआईआर  इन प्रमुख कार्यक्रमों के जरिए  राष्ट्र के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी गतिविधियों में भागीदारी के जरिए  सामाजिक चेतना और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने के लिए अग्रसर है। इस कार्यक्रम के तहत, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ राज्यों में किसान बैठक आयोजित की गई और  उन्हें आईएसएम चावल की किस्मों के बीज खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए वितरित किया गया।

सीएसआईआर 800 कार्यक्रम की सफलता की कहानियां आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में काफी लोकप्रिय है। राज्य कृषि विभाग के साथ सीएसआईआर-सीसीएमबी और आईसीएआर-आईआईआरआर के लगातार प्रयासों के कारण,अब  किसान अपने एक बड़े हिस्से में इसकी  खेती कर रहे हैं या कहें उनके द्वारा इसकी खेती सुनिश्चित की जा रही है।

नवंबर 2014 में  हुदहुद साइक्लोन (चक्रवात) के बाद, पूर्वी गोदावरी जिले में  कई इलाकों में बैक्टीरिया  ने किसानों के लिए आफत खड़ी कर दी थी.. तूफान के बाद  किसानों को   बैक्टीरियल महामारी से जूझना पड़ा…. जिन किसानों ने अपनी खेतों में सुधार  किया था उनके साम्बा महसूरी को इस रोग के हमले से बचा लिया जबकि सामान्य  सांबा महसूरी की खेती करने वाले  किसानों को  बुरी तरह प्रभावित होना पड़ा।

यही वजह है कि इस तरह के अनुभवों के कारण, बेहतर सांबा महसूरी की खेती आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और बिहार में 120000 हेक्टेयर तक पहुंच गई है। आलम ये है कि अब किसानों के लिए कुल कारोबार लगभग 600 करोड़ के करीब हो गई है। हमें कई हिस्सों में गुणवत्ता में सुधार देखने को मिली है …हालांकि कई क्षेत्रो में कुछ बहुत कम प्रतिरोधी शक्ति की  शिकायते मिली है

हमारे इस संयुक्त प्रयास को जल्द ही  मान्यता भी मिलने लगी…इसकी बहुत सराहना की गई  और नवाचार के लिए सीएसआईआर-सीसीएमबी को  ग्रामीण विकास -2013 के एसएंडटी नवाचार के लिए  पुरस्कार  दिया गया। साथ ही  2016 में संयुक्त रूप से आईसीएआर-आईआईआरआर और सीएसआईआर-सीसीएम को बायोटेक उत्पाद और प्रक्रिया विकास के लिए व्यावसायीकरण पुरस्कार भी दिया गया ।

बेहतर सांबा महसूरी एक शानदार उदाहरण है जिसमें यह बताता है कि राष्ट्र के लाभ  के लिए जब पारस्परिक रूप से पूरक विशेषज्ञता वाले संगठन राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं को सुलझाने के लिए सहयोग करते हैं और एक साथ सहयोगी के रूप मेम काम करते हैं । इस सहयोगी कार्यक्रम में चल रहे अनुसंधान का उद्देश्य सांबा महसूरी की बेहतर किस्मों को विकसित करना है, जो अन्य जैविक और बैक्टीरिया संबंधी तनावों को प्रतिरोधक हो और  उच्च उपज के लिए सहयोगी हो ।

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