“परीक्षा से दोस्ती कराता ‘परीक्षा पर चर्चा”

Team MyGov
January 25, 2023

परीक्षाएँ किसी न किसी रूप में मानव जीवन के साथ हमेशा से संबद्ध रही हैं। कभी औपचारिक रूप से तो कभी अनौपचारिक तौर पर. दसवीं या बारहवीं की स्कूली परीक्षाएँ बच्चों की प्रतिभा और क्षमता का आकलन करने का एक माध्यम होती हैं. पर कई बार यह उनके लिए मानसिक दबाव का बड़ा कारण भी बन जाती हैं। लेकिन चूँकि परीक्षाओं के बिना काम भी नहीं चलता, ऐसे में परीक्षाओं से घबराने की बजाय उनसे दोस्ती करना समय की माँग है. कहने की जरुरत नहीं कि इस संदर्भ में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पिछले 6 वर्षों से बच्चों और परीक्षाओं के बीच मैत्री कराने में एक ऐतिहासिक भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। परीक्षा पे अगली चर्चा कुछ ही दिनों में फिर होने वाली है.

भारत जैसे विशाल और सामाजिक- आर्थिक विविधताओं से परिपूर्ण राष्ट्र में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा ‘परीक्षा पे चर्चा’ जैसे आयोजन की शुरुआत अपने आप में बिलकुल अनोखा और अत्यंत दूरदर्शी कदम है। नामांकन के बाद स्कूल में ख़ासकर परीक्षा के समय छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों को किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता था यह किसी सरकार की चिंता का विषय नहीं होता था। जबकि यह सचाई रही है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वार्षिक परीक्षाओं के समय तनावग्रस्त होने लगता है।

परीक्षा में अंक की चिंता, बच्चों के भविष्य की चिंता और साथ ही पारिवारिक-सामाजिक दबाव के चलते विद्यार्थियों-अभिभावकों को अजीब स्थितियों का सामना करना पड़ता है। लगातार बढ़ते शहरीकरण और एकल परिवारों में बढ़ोतरी के चलते समाज में स्थिति और भी भयावह साबित हो रही है। कई बार इसकी परिणति डिप्रेशन या आत्महत्या तक में होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 25 वर्षों में यानी 1995 से लेकर अब तक देश ने इस तरह से तकरीबन 2 लाख विद्यार्थियों को खो दिया है जो कि किसी भी राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी क्षति है। इनके पीछे कारणों की तलाश करने पर परीक्षा का भय, तनाव, माता-पिता और अभिभावकों की एक सीमा से अधिक उम्मीदें, आत्मविश्वास की कमी आदि पाई जाती हैं। इनमें कई बार समस्या इस प्रकार की होती हैं जिन्हें समय रहते रोका और उनका निदान किया जा सकता है। पर उचित मार्गदर्शन और समुचित सलाह के अभाव में ऐसा नहीं हो पाता, जिसका भुगतान छात्र और उसके परिवार को करना पड़ता है। ऐसे में हमारी भावी पीढ़ी को ‘परीक्षा पे चर्चा’ के माध्यम से स्वयं प्रधानमंत्री मोदी का अनुभवी मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है।

वह कहते हैं कि परीक्षाओं के महत्व से इंकार तो नहीं किया जा सकता है पर हमें यह तय करना और समझना होगा कि क्या यह स्कूली परीक्षाएँ हमारे जीवन की एकमात्र कसौटी हैं? 10वीं एवं 12वीं कक्षा का स्कोरकार्ड ही किसी के जीवन का नियंता हो सकता है अथवा विद्यार्थी स्वयं भी अपना जीवन बिना स्कोरकार्ड के भी निर्मित कर सकता है। वह जोर देते हुए कहते हैं कि परीक्षा के गलियारों से निकली हुई ज़िंदगी ही ज़िंदगी नहीं होती है; उसके बाहर भी बहुत बड़ी दुनिया होती है। अनेक सफल लोगों के उदाहरण देकर वे समझाते हैं कि जीवन में सफलता प्राप्त करने, कुछ नया और अलग करने और एक आदर्श स्थापित करने के लिए स्कोरकार्ड का महारथी होना ही आवश्यक नहीं है।

वह यह भी कहते रहे हैं कि परीक्षाएँ हमारे जीवन का एक सहज हिस्सा होती हैं। हमें यह मानते हुए चलना चाहिए कि परीक्षा हमारी विकास यात्रा में एक और मील का पत्थर है। इसलिए तनाव न लेते हुए परीक्षाओं को उत्सव की तरह देखना और मनाना चाहिए। प्रारंभिक तौर पर तो यह बच्चों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास दिखाई देता है पर वास्तव में यह स्वाभिमान और आत्मसम्मान से युक्त जीवन की आधारशिला तैयार करने में सहायक होगी।

‘परीक्षा पे चर्चा’ आयोजन अपने आप में लोकतांत्रिकता और समावेशिता का बहुत बड़ा उदाहरण है, जो मोदी जी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ मंत्र का ही एक हिस्सा है. इसमें प्रतिभागी किसी ख़ास वर्ग, क्षेत्र, उम्र या जातियों और धर्मों/पंथों के न होकर भारत के सभी राज्यों बल्कि विदेशों से भी होते हैं. ये सभी एक लघु और भावी भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री के संवाद और उनकी दृष्टि की व्यापकता विद्यार्थियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर को केवल परीक्षा तक ही सीमित न रखकर उसे जीवन से जोड़ देती है। विद्यार्थी जीवन में आने वाली अनेक समस्याएँ प्रायः किसी न किसी रूप में जीवन के दूसरे पड़ाव में भी जरूर आती हैं। प्रेरणा, आत्मविश्वास, ध्यान केंद्रण, आशा, उत्साह, समय और तनाव प्रबंधन आदि ऐसे अनेक विषय हैं जिनका विद्यार्थी हो या आम व्यक्ति, जीवन भर सामना करता है। जनता से जुड़े प्रधानमंत्री इसे अच्छी तरह समझते हैं और यही कारण है कि परीक्षा संबंधित प्रश्नों के उनके उत्तर में भी जीवन का फ़लसफ़ा छुपा हुआ होता है। इस प्रकार ‘परीक्षा पे चर्चा’ के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की उस विशाल आबादी से भी जुड़ते हैं जो आने वाले कल का आधार है।

परीक्षाओं को सकारात्मकता से लेने के साथ-साथ जीवन से जोड़कर प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्ववर्ती चर्चाओं में जो बातें कही हैं वह द्रष्टव्य हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछली चर्चा में ध्यान और एकाग्रता की बात की जिसकी महत्ता प्राचीनकाल से लेकर अब तक मान्य है। यह हमें वर्तमान में उपस्थित रहना और कार्य को एकाग्रचित्त होकर करना सिखाता है जिसका परीक्षाओं में भी लाभ होगा।

इसके अलावा तकनीक और कौशल पर प्रधानमंत्री बल देते हैं। परीक्षा पे चर्चा के दौरान उन्होंने कहा है कि टेक्नोलॉजी का सही ढंग से इस्तेमाल कर हम जीवन और समाज को और अधिक बेहतर बना सकते हैं। बच्चों को अपनी परीक्षा के साथ भी और परीक्षा के बाद भी तकनीक के सहारे आगे बढ़ना चाहिए और जीवन में कुछ बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए।

यह अनायास नहीं कि ‘परीक्षा पे चर्चा’ आयोजन की लोकप्रियता दिनोंदिन लगातार बढ़ती जा रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपनी शुरुआत के कुछ ही वर्ष में यानी 2020 में देश और विदेश से प्रत्यक्ष और परोक्ष माध्यम से जुड़ने वाले प्रतिभागियों की संख्या 30 करोड़ तक पहुँच चुकी थी और जो बढ़ती ही जा रही है। इसका प्रमुख कारण अभिभावक की भूमिका में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी का होना तथा स्कूली और प्रतियोगी परीक्षाओं के बहाने जीवन की परीक्षाओं में सफलता का मंत्र देना है। मोदीजी बच्चों के साथ इतनी सहजता, सरलता और विनम्रता से जुड़ते हैं कि उन्हें यह पता भी नहीं चल पाता है कि वह विश्व के सबसे विशाल लोकतंत्र के प्रधानमंत्री से संवाद कर रहे हैं। इस आयोजन से किशोरों-युवाओं समेत देश की जनता का जुड़ना निश्चित ही कई पीढ़ियों का एक साथ मार्गदर्शन प्राप्त करना है जो दुनिया के किसी देश में आज तक नहीं हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी के जन-महानायक होने का यह एक और प्रमाण है।

लेखिका: श्रीमती अन्नपूर्णा देवी,  भारत सरकार की शिक्षा राज्यमंत्री हैं