वैश्विक स्तर पर छाप छोड़ता भारत, साझा भविष्य के निर्माण की भारतीय राह बड़ी उपयोगी

Team MyGov
May 15, 2023

इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर भारत के हाथों में जी-20 की कमान देखकर फ्रांस बहुत खुश है। यह वर्ष भारत के लिए अवसर लेकर आया है कि वह ‘वसुधैव कुटंबकम्’ के अपने विचार को साकार करे और पृथ्वी को सुरक्षित एवं हरित बनाने में अपने योगदान को विश्व में मान्यता दिलाए।

विश्व के समक्ष समस्याओं को सुलझाने की दृष्टि से जी-20 एक प्रमुख संगठन के रूप में उभरा है। इसमें दुनिया के सभी महाद्वीपों के देशों का समावेश है, जो वैश्विक आबादी के दो-तिहाई और 80 प्रतिशत से अधिक जीडीपी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में पृथ्वी को बचाने का बड़ा दारोमदार जी-20 के कंधों पर है। चिंतित करती हुई वैश्विक स्थितियों को देखते हुए हमें अब तत्काल कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन का खतरा हमारे मुंह बाएं खड़ा है। सभी देश दैनिक स्तर पर इसके खतरनाक परिणाम भी भुगत रहे हैं। दक्षिण एशिया में गर्म हवाओं के थपेड़े जैसे मौसमी पहलू भी इसमें शामिल हैं। महासागर प्रदूषण की मार से कराह रहे हैं। जैव-विविधता संकट में है। अंतरराष्ट्रीय तनाव चरम पर है। विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में टकराव तेज है, जिससे भारत भी बखूबी परिचित है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी भी महामारी से उत्पन्न गतिरोध से उबर रही है। इन सबसे बढ़कर यूक्रेन पर रूसी हमले ने चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। इसने वैश्विक आर्थिक रिकवरी को खतरे में डाल दिया है। इससे खाद्य, ऊर्जा और उर्वरक आदि की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं।

इन चुनौतियों से केवल एक अकेला देश नहीं जूझ सकता। इन चुनौतियों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप वैश्विक समाधानों की ही मांग करता है। ऐसे में बेहतर यही होगा कि विश्व उत्तर बनाम दक्षिण या पूरब बनाम पश्चिम के विभाजनों में न फंसकर एकजुट होकर काम करे। हमें अवरोध के बजाय सेतु बनाने होंगे। इसके लिए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का भारतीय दर्शन बहुत उपयोगी होगा। कुछ देशों के आक्रामक व्यवहार और अंतरराष्ट्रीय विभाजनों की काट में विश्व को एक परिवार मानकर साझा भविष्य के निर्माण की मंशा ही कारगर उपाय हो सकती है। राष्ट्रपति मैक्रों ने भी इसी प्रकार की अवधारणा को प्रोत्साहन दिया है। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में भी उनके ऐसे ही विचार प्रकट हुए।

इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर भारत के हाथों में जी-20 की कमान देखकर फ्रांस बहुत खुश है। यह वर्ष भारत के लिए अवसर लेकर आया है कि वह ‘वसुधैव कुटंबकम्’ के अपने विचार को साकार करे और पृथ्वी को सुरक्षित एवं हरित बनाने में अपने योगदान को विश्व में मान्यता दिलाए। फ्रांस पहले दिन से ही भारत की अध्यक्षता का समर्थन कर रहा है। कार्यकारी समूहों से लेकर मंत्रिस्तरीय समूहों से जुड़ी बैठकों में फ्रांस की सक्रिय भूमिका रही है। हम कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आयोजित की जा रही सभी बैठकों में शामिल हो रहे हैं। हमने भारत की प्राथमिकताओं जैसे कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दैनिक जीवन को सुगम बनाने से जुड़ी पहल और आपदा से निपटने के लिए उचित अवसंरचना बनाने की संकल्पना का पुरजोर समर्थन किया है।

चूंकि जी-20 अध्यक्षता का दौर अपने आधे से अधिक पड़ाव को पार कर चुका है, जिसमें 100 से अधिक बैठकें हो चुकी हैं तो यह पड़ताल आवश्यक है कि हमने कितनी प्रगति की? इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत अपनी अध्यक्षता में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्टर से लेकर वित्तीय सुधार, ऊर्जा संक्रमण और जलवायु परिवर्तन के उपायों पर चर्चा में हुई प्रगति पर गर्व कर सकता है। फिर भी, दो देशों के रवैये ने इस प्रगति पर ग्रहण लगा दिया है। इस कारण एक के बाद एक बैठक में वही स्थिति उत्पन्न होती जा रही है, जहां जी-20 के 18 सदस्य भारत द्वारा प्रस्तावित निष्कर्षों से पूर्ण सहमति जताते हैं, वहीं रूस और चीन इस सहमति में अड़ंगा लगा देते हैं। ऐसा क्यों है?

गत वर्ष बाली में हुए जी-20 सम्मेलन में यही सहमति बनी थी कि यूक्रेन में युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसके बावजूद रूस का अब भी यही रवैया है कि यूक्रेन में उसके आक्रमण से शेष विश्व को कोई सरोकार नहीं होना चाहिए, लेकिन यह सोच एकदम गलत है। पहली बात तो यही कि सीमाओं का अतिक्रमण और नागरिकों पर बमबारी एक सार्वभौमिक चिंता का विषय है। दूसरा यह कि इस युद्ध की गरीब देशों को बड़ी भारी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है। इसके चलते गैस, खाद्य उत्पाद और उर्वरक जैसी वस्तुओं के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं। इसलिए रूस को ऐसे किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि जी-20 को उसके नाकाम साम्राज्यवादी मंसूबों के विध्वंसक आर्थिक परिणामों पर प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में जी-20 को चाहिए कि वह रूस के पथभ्रष्ट युद्ध से उपजी खाद्य एवं ऊर्जा असुरक्षा का कोई समाधान तलाशे। रूस चाहे तो इस युद्ध को कभी भी समाप्त कर सकता है। आखिर रूस के सैन्य दुस्साहस की कीमत भारत की जी-20 अध्यक्षता भला क्यों चुकाए? रूस और चीन जी-20 के 18 देशों की इच्छा के विरुद्ध भारत की अध्यक्षता में क्यों ऐसे अड़ंगे लगाने पर तुले हैं?

इस साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में जी-20 के नेता जब दिल्ली में सम्मेलन के लिए जुटेंगे तो यह मुद्दा चर्चा के केंद्र में होगा। इस शिखर सम्मेलन में विश्व में दो अवधारणाएं दांव पर होंगी। एक युद्ध में विश्वास करने वाले, जो जब चाहें पड़ोसी पर हमला बोलकर उसकी जमीन हड़प लें और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को कुचलते रहें। दूसरी ओर होंगे वसुधैव कुटुंबकम् के समर्थक और ऐसा मानने वाले कि जिसके पास शक्ति हो आवश्यक नहीं कि वही सदैव सही हो। फ्रांस भारत के साथ मजबूती से खड़ा है और उसके विचारों के साथ है। हम भारत की आवाज के साथ अपनी आवाज मिलाएंगे, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति मैक्रों के साथ एक हालिया बातचीत में कहा भी था कि वैश्विक बेहतरी के लिए हमें एक साझा ताकत के रूप में काम करना होगा।

लेखक श्री, इमैनुएल लेनैनभारत में फ्रांस के राजदूत हैं

Total Comments - 0

Leave a Reply