शासक और लोक के बीच संवाद की नई परंपरा

Team MyGov
April 28, 2023

आकाशवाणी पर हर महीने के आखिरी रविवार को प्रसारित होने वाला कार्यक्रम मन की बात ऐसा कार्यक्रम है, जिस पर राजनीति से इतर तमाम बातें हुई हैं। इसमें खेती-किसानी, समाज, शिक्षा, स्टार्ट-अप, कोरोना, निजी स्वच्छता से लेकर सार्वजनिक सफाई व्यवस्था, भाषा जैसे विषयों पर चर्चा हुई है। जिस व्यक्ति को घोर राजनीतिक माना जाता रहा हो, उसकी ओर से सौ एपिसोड तक का कार्यक्रम हो और राजनीति की बात न हो, यह मामूली बात नहीं है।

मन की बात ऐसा अनूठा कार्यक्रम है, जिसने शासक और लोक के बीच संवाद की नई परंपरा कायम की है। हो सकता है कि सार्वजनिक प्रसारक की अपनी सीमाएं हों। लोकतांत्रिक परंपराओं की वजह से उसकी पहुंच में किंचित कमी आई हो, पर यह भी मामूली बात नहीं है कि किसी प्रमुख सार्वजनिक हस्ती द्वारा बिना-नागा नियमित रूप से सौ महीनों तक यह कार्यक्रम चले। रेडियो के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है, जो न सिर्फ नियमित रूप से लगातार प्रसारित हो रहा है, बल्कि आगामी 30 अप्रैल को इसका सौंवां एपिसोड पूरा होनेे जा रहा है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आदर्श चुनावी आचार संहिता की अवधि को छोड़ दें, तो यह कार्यक्रम अक्तूबर, 2014 से लगातार जारी है।

किसी राजनेता द्वारा रेडियो के जरिये लोगों से जुड़ने और अपनी बात कहने का पहला उदाहरण अमेरिका का है। अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने ऐसे कार्यक्रम की शुरुआत पिछली सदी के तीस के दशक में की थी। तब अमेरिका बैंकिंग संकट से जूझ रहा था। उन्हीं दिनों जर्मनी में हिटलर के उभार के बाद दूसरे विश्वयुद्ध की छाया मंडरा रही थी। वैसे में, संवाद के लिए रूजवेल्ट को सहज-सटीक माध्यम रेडियो ही लगा और उन्होंने साप्ताहिक तौर पर फायरसाइड चैट नाम से कार्यक्रम शुरू किया। इसके जरिये उन्होंने आर्थिक महामंदी और दूसरे विश्वयुद्ध के संदर्भ में उठने वाली अफवाहों का जवाब दिया तथा अविश्वास व भय के कुहासे को दूर किया। रूजवेल्ट का वह कार्यक्रम राजनीतिक कार्यक्रम ही था। पर मन की बात राजनीति से दूर रहा है। तीन अक्तूबर, 2014 को गांधी जयंती के ठीक अगले दिन शुरू हुए इस कार्यक्रम ने अपनी इस लंबी यात्रा में सिर्फ सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और आर्थिक मुद्दों को संबोधित किया है। इसी कार्यक्रम के जरिये ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम के विस्तार के रूप में ‘सेल्फी विथ डॉटर’ अभियान लॉन्च किया गया। नतीजतन अब बेटियों को लेकर सामाजिक पूर्वाग्रह छंटने लगे हैं।

इस कार्यक्रम के जरिये सबसे ज्यादा संवाद किसान, युवा और छात्रों से हुआ है। परीक्षाओं के भय सेे छात्रों को दूर रखना हो या ‘खेलो इंडिया’ कार्यक्रम को बढ़ावा देना, प्रधानमंत्री ने सीधा संवाद किया। योग से जोड़ना हो या मानसिक शांति के लिए कोशिश करनी हो, ऐसी अपीलें प्रधानमंत्री ने कई बार कीं।

भाषा, खासकर हिंदी से जुड़ी बात करने से राजनीति अक्सर बचती रही है। मोदी इन अर्थों में साहसी कहे जा सकते हैं। भारतीय नौकरशाही का रवैया हिंदी के प्रति सहिष्णु तो नहीं ही है। नीति निर्माण हो या प्रशासनिक फैसले, अंग्रेजी ही मुख्य भाषा है। ऐसे में प्रधानमंत्री ने देश से सीधे संवाद के लिए हिंदी को चुनकर नौकरशाही को संदेश दिया है। हालांकि इसका जमीनी असर बहुत ज्यादा नजर नहीं आ रहा।

संयुक्त राष्ट्र से लेकर विदेशी मंचों पर हिंदी बोलते रहे मोदी का तमिल न सीख पाने पर अफसोस जताना दरअसल भारतीय भाषाओं के बीच नए रिश्तों का संदेश है। भाषाओं पर 27 फरवरी, 2022 को प्रसारित कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, ‘मैं तो मातृभाषा के लिए यही कहूंगा कि जैसे हमारे जीवन को हमारी मां गढ़ती है, वैसे ही, मातृभाषा भी हमारे जीवन को गढ़ती है। मां और मातृभाषा, दोनों मिलकर जीवन की फाउंडेशन को मजबूत बनाते हैं, चिरंजीव बनाते हैं। जैसे, हम अपनी मां को नहीं छोड़ सकते, वैसे ही, अपनी मातृभाषा को भी नहीं छोड़ सकते।’

मन की बात सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक संवाद का ऐसा दस्तावेज है, जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है और जिसने कई मोर्चों पर सार्थक हस्तक्षेप भी किया है।

लेखक – उमेश चतुर्वेदी