स्वच्छ भारत अभियान का संकल्प वाहक

Team MyGov
April 28, 2023

भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसका मतलब यह है कि भारत धन-धान्य से पूर्ण था, लेकिन शायद साफ-सफाई पर लोगों का ध्यान नहीं था। शहर हो या गाँव, लोग साफ-सफाई पर ध्यान नहीं रखते थे। इस्तेमाल के बाद चीज़ों को जहाँ-तहाँ फेंक देते थे, जिससे चारों तरफ गंदगी-ही-गंदगी दिखाई पड़ती थी। इसके अलावा, लोग खुले में शौच करते थे, घरों में शौचालयों की व्यवस्था नहीं थी। महिलाओं को शौच के लिए जाने में अत्यधिक कठिनाई होती थी। उन्हें सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद शौच के लिए जाना पड़ता था। अंधकार में शौच के लिए जाने के कारण कभी-कभी सांप एवं बिच्छू इत्यादि डस लेते थे। कभी-कभी महिलाओं एवं लड़कियों के साथ आपराधिक घटनाएँ भी हो जाया करती थीं। लोग सड़क के दोनों किनारों पर या रेलवे ट्रैक के बगल में शौच के लिए जाते थे। कुछ गाँवों में एवं शहरों के मध्य में लोग कमाऊ शौचालय का उपयोग करते थे। सफाई कर्मचारी उन कमाऊ शौचालयों को साफ करते थे। यद्यपि वे लोग बहुत ही अच्छा कार्य करते थे, क्योंकि वे उन कमाऊ शौचालयों की सफाई न करते तो हैजा, इत्यादि बीमारियाँ फैल सकती थीं और लोग मर सकते थे। लेकिन मैला साफ करने वालों के साथ अमानवीय व्यवहार होता था और सुबह से शाम तक उन्हें अछूत जैसा अपमानसूचक शब्द सुनने को मिलता था।

1915 में महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करना प्रारंभ किया। भारत में चारों तरफ फैली गंदगी को देखकर गांधी जी ने 1919 में कहा कि उन्हें स्वच्छ भारत पहले चाहिए एवं आज़ादी बाद में। महात्मा गांधी ने आम लोगों से और खासकर आजादी में संलग्न वालंटियर्स को कहा कि वे लोग अधिक से अधिक ट्रेंच लैट्रिन का इस्तेमाल करें जो गांधी स्वयं दक्षिण अफ्रीका में करते थे। गांधीजी ने यह भी कहा कि जब तक घरों में शौचालयों की व्यवस्था नहीं हो जाती है तब तक खुले रूप में शौच करने जाएं तो शौच को ऊपर से मिट्टी से ढक दें ताकि मक्खियाँ शौच पर न बैठ सकें, अन्यथा वही मक्खियाँ भोजन पर बैठकर बीमारियाँ पैदा कर सकती हैं और खाने वाले बीमार पड़ सकते हैं। सफाई कर्मचारियों द्वारा मनुष्यमल के साफ करने के कार्य को एक नए शौचालय का आविष्कार कर बंद करा दिया जाए और छुआछूत की प्रथा को समाप्त कराकर मैला साफ करने में संलग्न लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ दिया जाए एवं उनकी प्रतिष्ठा समाज के लोगों के बराबर हो। गांधी ने यहाँ तक कहा था, “शायद मेरा पुनर्जन्म न हो, लेकिन अगर मेरा पुनर्जन्म होता है तो मैं एक वाल्मीकि परिवार में जन्म लेना चाहूँगा ताकि मैं उन्हें सिर पर मैला ढोने जैसी इस अमानवीय, अस्वस्थ एवं घृणित कार्य से मुक्ति दिला सकूँ।”

माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बने तो लाल क़िले से 2014 के 15 अगस्त को झंडा फहराते हुए उन्होंने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान चलाया जाए और कोई भी व्यक्ति शौच के लिए बाहर न जाए। इसके लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने का आह्वान किया। आधिकारिक तौर पर 2 अक्टूबर 2014 को शुरू किया गया, स्वच्छ भारत अभियान स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे सफल सरकारी पहलों में से एक है। यदि आप सोच रहे हैं कि यह कैसे हुआ, तो इसका उत्तर सरल है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि प्रधानमंत्री ने नागरिकों को अभियान का अविभाज्य और महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। अभियान की शुरुआत के एक दिन बाद 3 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के पहले ही एपिसोड में इसके बारे में बात की। उन्होंने लोगों से उत्साह के साथ अभियान से जुड़ने का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि देवालय से पहले शौचालय का निर्माण होना चाहिए। भारत के चार लाख पचास हज़ार स्कूलों में एक वर्ष के अंदर शौचालय बन जाएं ताकि स्कूलों में खासकर लड़कियों को शौच जाने में कोई दिक्कत न हो। इससे स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ेगी और एक वर्ष में सभी स्कूलों में शौचालय बन गए। उन्होंने यह भी कहा कि माता एवं बहनों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है इससे उन्हें बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता। अतः महात्मा गांधी जी के 150वीं जंयती के पूरे होने के दिन तक सभी घरों में शौचालय बन जाए एवं खुशी की बात यह है कि भारत के लगभग 11 करोड़ घरों में शौचालय बन गए एवं अब माताओं एवं बहनों को शौच के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है।

15 अगस्त, 2014 को माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने अपने हाथों झाड़ू उठाया एवं दिल्ली स्थित वाल्मीकि कॉलोनी में फैली हुई गंदगी को अपने झाड़ू से साफ किया और देश के लोगों को आह्वान किया कि वे लोग भी अपने-अपने हाथों में झाड़ू उठाएं एवं जहाँ भी गंदगी दिखे उसकी सफाई करें। वाराणसी में गंगा किनारे स्थित अस्सी घाट की सफाई अपने हाथों से की जहाँ पर 50 सालों से भी अधिक समय से मिट्टी जमा हुई थी। अस्सी घाट अब दर्शनीय हो गया है। स्थानीय लोगों द्वारा पूजा-अर्चना करने के अलावा देश-विदेश के पर्यटक अस्सी घाट आते हैं और गंगा की लहरों को देखकर आनंदित होते हैं।

माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के प्रयास से स्वच्छता की एक लहर चल गई है और कोई भी आदमी अब घर हो या बाहर या सार्वजनिक जगह कहीं पर भी गंदगी नहीं करता। यदि कोई करता है तो लोग उसे मना करते हैं। आज गाँव-गाँव, शहर-शहर, स्कूल हो या कॉलेज, चलती हुई रेलगाड़ी एवं बसों में भी लोग यात्रा के दौरान स्वच्छता के क्षेत्र में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा किए हुए एवं किए जा रहे स्वच्छता के आंदोलन की चर्चा करते हैं एवं प्रधानमंत्री द्वारा किए गए स्वच्छता के कार्य की सराहना करते हैं। पूरा देश अब साफ दिखने लगा है एवं इसका श्रेय माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी को जाता है। प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके। उन्होंने ‘मन की बात’ जैसे महत्त्वपूर्ण मंच अभियान के प्रत्येक माइलस्टोन और देश भर से इस अभियान से जुडी छोटी-बड़ी कहानियों को साझा करते हैं। इससे नागरिकों में गर्व की भावना पैदा तो हुई है, साथ ही लोग देश को स्वच्छ करने और रखने के लिए प्रेरित हैं।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश को स्वच्छ बनाने के लिए भारतीयों के बीच स्वच्छता का दीप जलाया है। उन्होंने स्वच्छता की उस संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए देशवासियों का आह्वान किया है, जो हड़प्पा-सभ्यता के समय यहाँ थी। आज जब ‘मन कि बात’ रेडियो कार्यक्रम अपने 100वें एपिसोड की ओर बढ़ रहा है, तब देश प्रधानमंत्री के नेतृत्व में स्वच्छ भारत अभियान जैसे कई क्रांतिकारी जन आंदोलनों के लिए तैयार है। मेरी देशवासियों से गुज़ारिश है कि हम लोगों को अपनी पूरी शक्ति तथा साधन-द्वारा प्रधानमंत्री जी का साथ देना चाहिए। एतदर्थ आएँ, हम सभी सभ्य, सुसंस्कृत और स्वच्छ हो कर भारत को सभ्य, सुसंस्कृत तथा स्वच्छ राष्ट्रों की कतार में अग्रणी बनाएँ।

लेखक: डॉ. बिंदेश्वर पाठक

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