विक्रमोत्सव 2024- उज्जैन की धरती पर निवेश और संस्कृति का महाकुंभ

Blog By - Team MyGov,
February 29, 2024

आकाशे तारकेलिंगम, पाताले हाटकेश्वरम्।
मृत्युलोके महाकालं, त्रयलिंगम नमोस्तुते।।

अर्थात आकाश में तारकालिंग, पाताल में हाटकेश्वर, तथा पृथ्वीलोक में महाकाल हैं।

महाकाल की महानता सर्वव्यापी है। इस भूलोक में महाकाल कहां विराजित हैं इस जिज्ञासा की पूर्ति के लिए वराह पुराण में कहा गया है कि “नाभिदेशे महाकालस्तन्नाम्ना तत्र वै हर:”। यह नाभिदेश उज्जैन ही है। उज्जैन का गौरव महाकाल है महाकाल की महिमा अपूर्व है। शिव पुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंगों में महाकाल प्रसिद्ध है क्योंकि वे स्वयं कालों के काल हैं। कर्क रेखा उज्जैन से ही गुजरती है, जिसके केन्द्र के रूप में कर्कराजेश्वर मंदिर विद्यमान है।

उज्जयिनी का प्राचीन गौरव एवं इतिहास-
 उज्जयिनी – पृथ्वी लोक के अधिष्ठाता भगवान महाकाल द्वारा अधिष्ठित नगरी, पावन क्षिप्रा के तट पर अवस्थित यह पुराण प्रसिद्ध नगरी, पृथ्वी के नाभि-स्थल पर स्थित हजारों वर्षों से विश्व की सभ्यताओं के आकर्षण का केन्द्र रही है। सभ्यता और संस्कृति की अनेक धाराओं का संगम उज्जयिनी में था, चाहे वह व्यापार-व्यवसाय की धारा हो अथवा विभिन्न धर्मों की धारा हो या विश्व की विभिन्न संस्कृतियों की। यह महानगरी सुन्दर देवालयों से सुशोभित है तथा दृढ़ प्राकार और तोरणों से युक्त है।

उज्जयिनी  धार्मिक सम्प्रदायों का संगम है। स्कंदपुराण के अवन्ती खण्ड में यह विवरण दिया गया है कि यहाँ पर चौरासी महादेव, आठ भैरव, एकादश रूद्र, द्वादश आदित्य, छह विनायक, चौबीस देवियाँ, दस विष्णु तथा नव नारायण विराजमान हैं। हिन्दू धर्म के तीनों प्रमुख सम्प्रदाय अर्थात् शैव, वैष्णव तथा शाक्तों के अतिरिक्त यह नगरी जैन तथा बौद्ध धर्म का भी महत्वपूर्ण केन्द्र रही है। इसी प्रकार क्षिप्रा नदी का महत्व भी पवित्र गंगा, नर्मदा तथा गोदावरी नदियों के सदृश बताया गया है।

ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर और पवित्र क्षिप्रा नदी के अतिरिक्त यहाँ पर गोपाल मंदिर, हरसिद्धि पीठ, चिंतामण गणेश, मंगलनाथ, महर्षि सांदीपनि पीठ, महर्षि सांदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान, महाप्रभु वल्लभाचार्य की बैठक, कालभैरव तथा कालिदास अकादमी जैसे संस्थान तथा मंदिर हैं। इसे मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है।

विक्रमादित्य भारत वर्ष में नव जागरण और भारत उत्कर्ष की एक महत्वपूर्ण धुरी रहे हैं। विक्रमादित्य ने काल गणना और ज्योतिर्विज्ञान के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उज्जैन को विकसित किया। उत्तरदायी तथा न्यायव्यवस्था की स्थापना की। साहित्य, संस्कृति, संगीत, नाट्य, ज्ञान विज्ञान, चिकित्सा आदि बहुविध क्षेत्रों के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों को, मनीषियों को संरक्षण समर्थन दिया।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा कहा गया है कि भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन वह नगरी है, जो प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है। “प्रलयो न बाध्यते, तत् महाकाल पूज्यते”। उज्जैन न केवल काल गणना एवं ज्योतिषिय गणना का केन्द्र है, अपितु यह भारत की आत्मा का केन्द्र भी है। विक्रमादित्य के प्रताप से भारत के स्वर्णकाल की शुरूआत हुई। विक्रम संवत महाकाल की भूमि से ही शुरू हुआ। उज्जैन के क्षण-क्षण में इतिहास, कण-कण में आध्यात्म और कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा है। उज्जैन ने एक हजार वर्षों तक भारत की सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान, गरिमा, साहित्य, कला का नेतृत्व किया। कालिदास एवं बाणभट्ट की रचनाओं में यहाँ की सभ्यता, संस्कृति, शिल्प और वैभव का वर्णन मिलता है।

‘श्री महाकाल लोक’ दिव्य है। यहाँ सब कुछ अलौकिक, अविस्मरणीय एवं अविश्वसनीय है ‘ महाकाल लोक में हमारी सांस्कृतिक परम्परा को कला एवं शिल्प के रूप में उकेरा गया है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में प्रदेश की प्रगति और विकास के लिए मध्यप्रदेश सरकार संकल्पित है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने उज्जैनी के महत्व का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उज्जैनी में संपूर्ण सृष्टि समाहित है। विश्व के सात सागर प्रतीक स्वरूप उज्जैन के सप्त-सागर में विद्धमान है, 84 लाख योनियों का प्रतिनिधित्व उज्जैन का 84 महादेव मंदिर करता है। द्वारिका सहित हमारी कई ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं की पुष्टि वर्तमान का ज्ञान और आधुनिक यंत्र करते हैं। राजा विक्रमादित्य न्याय के प्रतीक थे। विक्रमोत्सव भव्य स्वरूप से आयोजित होगा। प्रदेश में औद्योगिक विकास की बहुत संभावनाएं हैं। इन्हें साकार किया जाएगा।

महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ, संस्‍कृति विभाग,  मध्यप्रदेश शासन द्वारा विक्रमादित्य, उनके युग, भारत उत्कर्ष, नव जागरण और भारत विद्या पर एकाग्र समागम विक्रमोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। विक्रमोत्सव का आयोजन वर्ष 2006 से निरंतर किया जा रहा है।

विक्रमोत्सव-2024 के अंतर्गत प्रमुख आयोजनों व गतिविधियों में शामिल हैं:-

 रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव

 प्रदेश की समृद्धि और विकास के एक महत्वपूर्ण आयाम के रूप में उज्जैन एवं इसके आस पास के ज़िलों में रोज़गार एवं व्यापार की अपार संभावनाओं को बल देने हेतु एवं इस क्षेत्र की सांस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहरों को संजोने हेतु रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है।

रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव अर्थात समिट के माध्यम से औद्योगिक विकास के लिए निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। उज्जैन सहित पूरे प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों को समिट का लाभ मिलेगा।

उज्जयिनी विक्रम व्‍यापार मेला

 वर्तमान परिवेश में सरकार द्वारा पुन: उज्‍जैन नगरी के उद्योग /व्‍यापार छवि को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में 40 दिवस तक उज्जयिनी विक्रम व्‍यापार मेला का आयोजन दशहरा मैदान एवं पीजीबीटी मैदान उज्‍जैन में किया जा रहा है । 01 मार्च से 9 अप्रैल 2024 तक लगातार 40 दिन मेले में आटोमोबाइल, इलेक्‍टॉनिक, हस्‍तशिल्‍प उत्‍पाद, झूले और खान-पान की दुकाने लगेगी । यह आयोजन देश-प्रदेश की सांस्कृतिक दुनिया का सबसे लंबी अवधि तक चलने वाला आयोजन है।

उज्‍जैन व्‍यापार मेला के परिणाम स्‍वरूप उज्‍जैन नगरी निवेश एवं पर्यटन व व्‍यापार केन्‍द्र के रूप में स्‍थापित होगी जिसका लाभ रहवासियों को रोजगार के रूप में भी होगा। व्‍यापार मेले में प्रदेश के उद्यमियों, व्‍यापारियों को विपणन का अवसर मिलेगा । जिससे क्षेत्रीय उत्‍पादों, संस्‍कृति, कला एवं पर्यटन को भी प्रोत्‍साहन मिलेगा।

भारतीय कालगणना पर आधारित विश्व की पहली विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण

 भारतीय कालगणना विश्‍व की प्राचीनतम, सूक्ष्‍म, शुद्ध, त्रुटिरहित, प्रामाणिक एवं विश्‍वसनीय पद्धति है। काल/परिमाण की इस सर्वाधिक विश्‍वसनीय पद्धति का पुनरस्‍थापन विक्रमादित्‍य वैदिक घड़ी के रूप में उज्‍जैन में प्रारंभ किया जा रहा है। उज्‍जयिनी की स्‍थापना सृष्टि के आरंभ से ही मान्‍य की जाती रही है। दुनियाभर में उ‍ज्‍जयिनी से निर्धारित और प्रसरित कालगणना नियामक रही है।

विक्रमादित्‍य वैदिक घड़ी भारतीय काल गणना पर आधारित विश्‍व की पहली घड़ी है जिसे वैदिक काल गणना के समस्‍त घटकों को समवेत कर बनाया गया है। इस घड़ी में भारतीय पंचांग समाहित रहेगा। विक्रम सम्‍वत् मास, ग्रह स्थिति, योग, भद्रा स्थिति, चंद्र स्थिति, पर्व, शुभाशुभ मुहूर्त, घटी, नक्षत्र, जयंती, व्रत, त्‍यौहार, चौघडि़या, सूर्य ग्रहण, चन्‍द्र ग्रहण, आकाशस्‍थ, ग्रह, नक्षत्र, ग्रहों का परिभ्रमण इसमें स्‍वाभाविक रूप से समाहित होंगे। विक्रमादित्‍य वैदिक घड़ी VST=1.25 Time Zone- Sunrise पर आधारित है जो कि वैदिक आधार है।

 वीर भारत – युगयुगीन भारत के कालजयी महानायकों की तेजस्विता का संग्रहालय

 आजादी के अमृतकाल में भारतवर्ष के गौरवशाली और पराक्रमी अतीत से सुपरिचय तथा प्रेरणा हमारे समय की अपरिहार्य आवश्‍यकता है। मध्‍यप्रदेश का यह एक राष्‍ट्रव्‍यापी, महत्वाकांक्षी स्‍वप्‍न है जिसे चरितार्थ करने के लिए वीर भारत मंदिर में भारत की तेजस्विता और पराक्रम के‍ विभिन्‍न आयामों को व्‍यापक रूप से प्रस्‍तुत किये जाने का प्रदेश संकल्पित है।

देश और दुनिया में अपनी तरह के सर्वथा अनूठे और सबसे पहले वीर भारत मंदिर के लिए उज्‍जैन में ऐतिहासिक धरोहर कोठी पैलेस को उपलब्‍ध कराया गया है। जहाँ पर तेजस्‍वी नायकों, सतपुरूषों की प्रेरक कथाओं, वाणियों और चरित्रों का चित्रांकन, उत्‍कीर्णन, शिल्‍पांकन, ध्‍वन्‍यांकन, पारंपरिक और अधुनातन तकनीकों से किया जायेगा।

आईये हम सभी उज्जैन की पावन धरा पर निवेश और संस्कृति के महाकुंभ के भव्य आयोजन में सहभागी बनें।

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